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मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
मूर्तियां हैं, जिनमें यक्ष को सामान्यतः ऊर्ध्वं भुजाओं में अंकुश एवं पारा धारण किये हुए प्रदर्शित किया गया है ।
प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ की यक्षी चक्रेश्वरी की भी दो मूर्तियां क्रमशः मूलप्रासाद के पूर्वी और पश्चिमी" अधिष्ठान पर उत्कीर्णित है । दोनों ही उदाहरणों में यक्षी ललितमुद्रा में पद्मासन पर विराजमान है । पूर्वी अधिष्ठान के उदाहरण में आसन के समक्ष गरुड वाहन को मानव रूप में दोनों हाथ जोड़े उड्डीयमान मुद्रा में चित्रित किया गया है । दूसरे उदाहरण में गरुड वाहन ( नर रूप में) की लघु आकृति यक्षी के वाम चरण के नीचे उत्कीर्ण है । दोनों ही उदाहरण में करण्डमुकुट और ज्वालामय भामण्डल से सुशोभित यक्षी के करों मैं वरदाक्ष, चक्र, चक्र एवं फल प्रदर्शित है । १५
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मुखमण्डप के पूर्वी अधिष्ठान की रथिका में नेमिनाथ की यक्षी अम्बिका की मूर्ति स्थापित है । ललितमुद्रा में पद्मासन पर विराजमान द्विभुज यक्षी का सिंह वाहन उसके वाम पाद के नीचे उत्कीर्ण है । यक्षी की दाहिनी भुजा में आम्रलुबि प्रदर्शित है और बायों से बह गोद में अवस्थित बालक को सहारा दे रही है ।" यक्षी का दूसरा पुत्र उसके दक्षिण पार्श्व में स्थित है। यक्षी के शीर्ष भाग में आम्रलुंनि के गुच्छ उत्कीर्ण हैं |
अर्धमण्डप के सीढ़ियों के समीप भी तीन जैन देवियों को आमूर्तित किया गया है। दाहिने पार्श्व में १३ वीं महाविद्या वैरोट्या उत्कीर्णित है । दो सर्पों के फणों पर ललित मुद्रा में आसीन महाविद्या दो सेविकाओं से सेव्यमान है। देवी की भुजाओं में सर्प, खड्ग, फलक, एवं सर्प प्रदर्शित है ।" वाम पार्श्व की देवी की सम्भावित पहचान आयुधों के आधार पर सर्वानुभूति यक्ष की शक्ति से की जा सकती है । दो सेविकाओं से वेष्टित देवी ललितमुद्रा में पद्म पर बिराजमान है। देवी की भुजाओं में पदम, अंकुश, पाश और बीजपूरक प्रदर्शित है । समान विवरणों वाली देवी ११वीं - १२ वीं शती के श्वेताम्बर स्थलों पर अत्यधिक लोकप्रिय रही है । सोढ़ियों के पश्चिमी भाग में धम्मिल्ल से सुशोभित देवी की पद्मासीन मूर्ति आमूर्तित है । दाहिने पार्श्व में घट का चित्रण संभवतः वाहन का सूचक हैं। देवी के करों में मातुलिंग, पद्म, लंच दण्ड (१), एवं जल पात्र प्रदर्शित है । दक्षिण पार्श्व में घट के प्रदर्शन के आधार पर देवी की संभावित पहचान सकती है। मधुसूदन ढाकी ने देवी की पहचान १६ वीं यक्षो निर्वाणी से की है । "
भुजा में पद्म और
लक्ष्मी से की जा
जैन प्रतिमाविज्ञान के अध्ययन की दृष्टि से उपर्युक्त चित्रणों जितना ही महत्त्वपूर्ण मन्दिर के गूढ़मण्डप एवं मूलप्रसाद के प्रवेशद्वारों पर द्विभुज एवं चतुर्भुज देवियों का उत्कीर्णन है । सभी उदाहरणों में देवियों के साथ वाहन को चित्रित किया गया है। गूढ़मण्डप के ललाटचित्र के रूप में पांच सर्प फगों से आच्छादित सुपार्श्वनाथ की ध्यानस्थ मूर्ति आमूर्तित है । सुपा के प्रत्येक पात्र में देवियों की ललितमुद्रा में आसोन चार आकृतियां ७.६ x ५. ३१) उत्कीर्ण है । वापीं आर की पहली द्विभुज देवो ( दर्शक की दृष्टि से ) छठीं महाविद्या पुरुषत्ता है | महिषवाना देवी के करोंमें खड्ग और खेटक प्रदर्शित है । १९ दूसरी मूर्ति संभवतः नरवाहना महाकाली ( आठवीं महाविद्या) का अंकन करतो है । द्विभुज देवी फल एवं मुद्रा ( 3 ) से युक्त है । २० तीसरी द्विभुज देवी सातवीं महाविद्या काली का चित्रण करती है । पद्मासन पर विराजमान देवी गदा एवं वरद से युक्त है । ४१ चौथी द्विभु