Book Title: Sambodh Prakaran Part 01
Author(s): Rajshekharsuri, Dharmshekharvijay
Publisher: Arihant Aradhak Trust
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૧૬૧
દેવ અધિકાર चतुर्दशरत्नत्वेनापि प्राप्तं न पुनः विमानस्वामित्वम् । सम्यक्त्व-ज्ञान-संयम-तपसादिभावा न भावद्विके ॥ २९९ ॥....... २९९ अणुभवजुत्ता भत्ती, जिणाण साहम्मियाण वच्छलं। न य साहेइ अभव्वो, संविग्गत्तं च तप्पक्खं ॥३०० ॥ अनुभवयुक्ता भक्तिर्जिनानां साधर्मिकानां वात्सल्यम् । न च साध्नोति अभव्यः संविग्नत्वं च तत्पक्षम् ।। ३०० ॥......... ३०० जिणजणयजणणी जाया, जिणभिक्खादायगा जुगपहाणा ।
आयरियपयाइदसगं, परमत्थगुणड्डमप्पत्तं ॥३०१॥ जिनजनक-जननी-जाया जिनभिक्षादायका युगप्रधाना । आचार्यपदादिदशकं परमार्थगुणाढ्यमप्राप्तम् ॥ ३०१ ॥........... ३०१ अणुबंध १ हेउ २ सरूवा ३, तत्थ अहिंसा तिहा जिणुहिट्ठा । दव्वेण य भावेण य, दुहावि तेसिं न संपत्ता ॥३०२॥ अनुबन्ध-हेतु-स्वरूपास्तत्राहिंसा त्रिधा जिनोद्दिष्टा । द्रव्येण भावेन च द्विधाऽपि तेषां न संप्राप्ता ॥ ३०२ ॥ ............... ३०२ ગાથાર્થ– નીચે મુજબના ભાવોને અભવ્યો સ્પર્શતા નથી. (૧) द्रपj, (२) अनुत्त२११५, (3) शापुरुष, (४) ना२६५j (२८४), (५) वजी भगवंत मने गए५२न थे. दीक्षu, (६) तीर्थ २- वार्षिान, (७) सनव-हेवीj, (८) alsilas पर्नु स्वाभी५j (२८५), (९) त्रायविंशव५j, (१०) ५२मापार्मि५j, (११) युगाला मनुष्य, (१२) संमिनश्रोतव्य, (१३) पूर्वपसब्धि, (१४) भाडाser, (१५) Yeuseu (२८६), (१६) भतिशनासुलाव्य, (१७) सुपात्रहान, (१८) समाविम२९१, (१८) घाय॥२९सन्धि, (२०) विधाय॥२९॥सल्य, (२१) मधुमाश्रय, (२२) घृताश्रव्य, (23) क्षी|श्रवमय, (२४) અક્ષણમહાનસલબ્ધિ (૨૯૭), (૨૫) તીર્થકર શરીરના તથા તીર્થકરની प्रतिमान परिमोम मावे ते पृथ्वीयाj (२८८), (२६) यौह रत्न, (२७) विमानस्वामिपj, (२८) सभ्यत्व-शान-यारित्र
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