Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar Author(s): Shantipriyasagar Publisher: Jityasha Foundation View full book textPage 5
________________ श्री चन्द्रप्रभ : झरने-सा बहता जीवन fors 1 Jain Education International दार्शनिकों का स्वर्णिम युग भारत का दर्शनशास्त्र अत्यन्त समृद्ध रहा है। विश्व में जितने भी दर्शन और उनकी दार्शनिक परम्पराओं का अभ्युदय हुआ, उन पर भारतीय दर्शनों का स्पष्ट तौर पर प्रभाव दिखाई देता है। सम्पूर्ण विश्व में जीवन-मूल्यों की आध्यात्मिक शिक्षा देने वाला देश भारत ही रहा है। भारत अध्यात्म का जनक है और सारा विश्व उसके लिए 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के दायरे में आता है। भारत के इस व्यापक दृष्टिकोण ने ही इसे विश्वगुरु का दर्जा दिलाया है। जहाँ भारतीय दर्शनों में भौतिक जगत से परे स्वर्ग, नरक, ईश्वर, ब्रह्म, मोक्ष, अध्यात्म जैसे बिंदुओं पर गहन-गंभीर तात्त्विक व्याख्याएँ की गईं और जीवन का अंतिम साध्य मोक्ष माना गया, वहीं पाश्चात्य दर्शनों में कला, सौन्दर्य, नीति, तर्क, राजनीति जैसे पहलुओं पर प्रकाश डाला गया। इसलिए कहा जा सकता है कि भारतीय दर्शनों का विकास अध्यात्मपरक रहा है और पाश्चात्य दर्शनों का विकास बुद्धिपरक । विज्ञान के युग ने सभी भारतीय एवं पाश्चात्य दर्शनों को प्रभावित किया। जैसे-जैसे विज्ञान का प्रभाव बढ़ता गया, वैसे-वैसे मानवता का झुकाव भी विज्ञान की ओर बढ़ने लगा। वर्तमान युग विज्ञान का युग है। विश्व के हर क्षेत्र में विज्ञान ने दस्तक दी है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति के विचार, व्यवहार एवं जीवन-मूल्यों में भारी परिवर्तन आए हैं। आज विश्व के सामने आतंक, गरीबी, नारी-शोषण, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि, शस्त्रों की होड़, नशे की बढ़ती प्रवृत्ति, गिरते हुए जीवन-मूल्य, जलवायु में बढ़ता प्रदूषण, असीम लालसाओं से उत्पन्न चिंता-तनावगत बीमारियाँ, आत्महत्याएँ, परिवारों में टकराव, टूटते संबंध, दिनोंदिन बढ़ती स्वार्थवृत्ति, मानवता का ह्रास जैसी अनगिनत समस्याएँ हैं । इन्हीं समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने के लिए नीत्से, कांट, विंग, रसेल, हाइडेगर, युंगलर, गुर्जिएफ, रस्किन, मार्क्स जैसे पाश्चात्य दार्शनिक और स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी, महर्षि अरविंद, रविन्द्र नाथ टैगोर, जे. कृष्णमूर्ति, आचार्य विनोबा भावे, सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, ओशो, आचार्य महाप्रज्ञ एवं श्री चन्द्रप्रभ जैसे वर्तमान युग के महान भारतीय दार्शनिकों ने अपनी विशिष्ट दार्शनिक शैली से अध्यात्म को जीवन - सापेक्ष स्वरूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है। उन्होंने अध्यात्म एवं विज्ञान का संतुलित समन्वय करके विश्व को वर्तमानकालीन व्यवस्थाओं से उत्पन्न समस्याओं का मनोवैज्ञानिक समाधान दिया है, साथ ही हमारे समक्ष उन्नत भविष्य की रूपरेखा प्रस्तुत की है। उन्होंने विश्व की हर समस्या का समाधान पाने के लिए सर्वप्रथम मनुष्य की सोच एवं चिंतन को सही दिशा प्रदान करने पर बल दिया है। For Personal & Private Use Only संबोधि टाइम्स 5 www.jainelibrary.orgPage Navigation
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