________________
समवसरण.
॥श्री तीर्थंकर भगवान. ॥
तीर्थकर नामकर्मोपार्जन करने के बीस स्थान ।
(१) अरिहन्त (२) सिद्ध (३) प्रवचन (४) गुरु (५) स्थविर (६) बहुश्रुति (७) तपस्वी (८) ज्ञानी (९) दर्शन (१०) विनय (११) षडावश्यक (१२) निरतिचार व्रत (१३) उत्तमध्यान (१४) तपश्चर्या (१५) दान (१६) वैयावच्च (१७) समाधि (१८) अपूर्वज्ञान (१९) सूत्र सिद्धान्तकी भक्ति (२०) मिथ्यात्व को नष्ट करता हुवा शासनकी प्रभावना करना एवं वीस स्थान की सेवापूजा आराधना और अनुकरण करनेसे जीव तीर्थंकर नामकर्मोपार्जन करते है और तीसरे भवमें तीर्थकर हो जगत् का उद्धार कर सक्ते हैं. तीर्थकरोके पांच कल्याणक.
(१) चवण कल्याणक (२) जन्म कल्याणक (३) दीक्षाकल्याणक (४) कैवल्य कल्याणक और (५) निर्वाण कल्याणक । तीर्थकरो के कल्याणक के दिन धर्म कार्य करना विशेष फलदाता है. तीर्थकर अष्टादश दोष रहित होते है.
(१) अज्ञान (२) मिथ्यात्व (३) अविरति (४) राग (५) द्वेष (६) काम (७) हास्य (८) रति (९) अरति (१०) भय (११) शोक (१२) दुर्गच्छा (१३) निद्रा (१४) दानान्तराय (१५) ला.