Book Title: Samavsaran Prakaran
Author(s): Gyansundar Muni
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 36
________________ इन्दादि महद्धिवेकः तइत्र बहिंसुरा तुम्बरू । खटुंगि कपालि जटमउड धारि ।. पुब्बाइ दारपाला । तुम्बरू देवोत्र पडिहारो ॥ २१ ॥ . भावार्थ-तीसरे चान्दी के प्रकोट के प्रत्येक दरवाजे पर प्रतिहार देवता होते है जिनके नाम तुम्बरू, खड्गी कपालिक, और झटमुकुटधारी, इन चारो देवताओं के हाथमें छडी रहती है, और शासन रक्षा करना इनका कर्तव्य है। समान्न समोसरणो । एस विही एइ जइ महडिसुरो। सन्न मिणं एगो विहु । सकुणई भयणे पर सुरेसु ॥ २२ ॥ भावार्थ- तीर्थकरों के समवसरण का शास्त्रों में बहुत विस्तार से वर्णन है, पर बालबोध के लिए इस लघु ग्रन्थ में सा. मान्य, (संक्षिप्त) वर्णन किया है। इस समवसरण की देवताओं का समूह अर्थात् इन्द्र के आदेश से चार प्रकार के देवता एकत्र हो कर रचना करते हैं। अगर महाऋद्धी सम्पन्न एक भी देवता चाहे तो पूर्वोक्त समवसरण की रचना कर सक्ता है तो अधिक का तो कहना ही क्या ? . पर अल्पऋद्धीक देव के लिए भजना है, वह करे या न भी कर सके। पुब मजायं जत्थो । जत्थई सुरो महड्डि मघवई । तत्थरो सरणं नियमा । सययं पुण पाडिहराई ॥ २३ ॥ ___ भावार्थ-समवसरण की रचना किस स्थान पर होती है ? वह कहते हैं कि जहां तीर्थंकरों को कैवल्य ज्ञानोत्पन्न होता

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