Book Title: Samavsaran Prakaran
Author(s): Gyansundar Muni
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 44
________________ गोड़वाड का हित. प्रक्षाल होता है न अंगलुणा होता है न देखरेख करने को टाइम मिलता है। कितनेक तो मन्दिर के बाहर खडे हो दर्शन कर लेते है और कितने क घसी हुई केसर तय्यार मीजने से भगवान् के चरण टीकी लगाके कृतार्थ बन जाते है विधर्मी नौकार पूजारी चाहे कितनी आशातना करे पर परवाह किस कों ? इतनी ही देवद्रव्य का अशातना ( नुकशांन ) हो रहा है, सोचना चाहिये कि जिसकी वदोलत से हम सुखी हुए है और उनकी ही अशातना होना हमारे लिये कितनी बुरी है । अतएव प्रभुपूजा और देव द्रव्य की सुन्दर विवस्था होना बहुत जरूरी बात है। ..., (८) विद्या प्रचार-आज भारत के कोने कोने से अविद्या के थाणे उठ गये है पर न जाने गोडवाड़ से ही अविद्या का इतना प्रेम क्यों है कि वह इसको छोडना नहीं चाहाती है । गोडवाड़ी लोगों को विद्या की और इतनी तो अरूची है कि एक सौ पांच डिंगरी बुखारवाला को जितनी अन्नपर अरूची होती है । फिर भी उपदेशकों के जोर जुलम (परिश्रम) से कितनेक ग्रामोंमे पाठशालाए दृष्टिगोचर होती है पर उनकी देखरेख सारसंभाल के प्रभाव जितना द्रव्य व्यय किया जाता है उतना लाभ नहीं है । इस समय विद्याप्रेमि जैनाचार्य श्रीमद्विजयवल्लभसूरिजी तथा पन्यासजी श्री ललितविजयजी महाराज और कितने ही विद्याभिलाषी गोड़वाड के अग्रेसरों के प्रयत्न से श्री वरकांणा तीर्थ पर 'श्री पार्श्वनाथ जैन विद्यालय' नामक संस्थाका जन्म हुआ है। हमारे गोडवाड़ के अग्रेसर सज्जन इस आदर्श संस्था कि सेवा-भक्ति और उपासना

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