Book Title: Samavsaran Prakaran
Author(s): Gyansundar Muni
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ मोडवा का दिव. होती हो तो हमारी बुजर्ग माताओं उन को हुकम के जरिये जबर नचाती है । यह कितना अज्ञान ! अलबत, जमाना कि हवा लगने से कुच्छ सुधाग जरूर हुआ है पर अभीतक गाँवों में इस रूढि के गुलामों की कमती नहीं है श्रतएव इस कुरूढि को मिटाना जरूरी है कारण यह एक व्यभिचार को खास रांखा है । . 1 3 ( २ ) लग्न सादियों में असभ्य और निर्लज्ज गालियों की प्रथा भी इस प्रान्त में बडी जोर शोर से प्रचलित है कइ कइ जगह तो विचारी वैश्याओं को भी सरमाने जैसी गाज़ियों गाई जाति है और उन के बाल बच्चों के कोमल हृदय पर इतना बुरा असर पडता है कि वह बालब्रह्मचारी के बदले बाल. व्यभिचारी बन जाते है । छोटी छोटी बालिकाएं रजस्वलाधर्म को प्राप्त हो जाति है इस का भी मुख्य कारण वह खराब गालियों है। बालकों को व्यभिचारी बनाने में उन के घर स्कूल और माताए अध्यापिका है अगर अपने बाल बच्चों को सदाचारी दीर्घायु और वीर बनाना हो तो सब से पहले इस कुरूढि को जलाञ्जली दे दिजिये । आप के संगा गनायतों और जमाइयो के दील को रंजन ही करना हो तो अपनी बहन बेटियों को सदाचार और वीरता की गालियां सिखाईये कि जिन से आप की संतान सदाचारी और वीर बने । - (३) पाणी के सरवा गोडवाड़ में प्रायः यह रिवाज है। किं जिस लोटा - गीलास से पाणी पीया हो वह ही लोटा फीर बरतन ( माटा) में डाल देंगें कि वह सब पाणी झूठा हो जायगा । 7.

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46