Book Title: Samavsaran Prakaran
Author(s): Gyansundar Muni
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 35
________________ ર समवसरण प्रकरण. पी सिरत सामा । सुरवण जोई भवणा रयण वप्पे | धणु दण्ड पास गय हत्या । सोम जय वारूण धरणजक्खा | ११ | भावार्थ- प्रथम रत्नों के गढ़ के दरवाजे पर एकेक देवता हाथ में अवध लिए प्रतिहार के रूप में खडे रहते हैं ( १ ) पूर्व दिशा के दरवाजे पर सुवर्ण क्रान्ती शरीरवालासोमनामक वैमानिक देवता, हाथ में ध्वज लिए खडा रहता हैं ! ( २ ) दक्षिण के दरवाजे पर श्वेत वर्णमय यम नामक व्यन्तर देव हाथ में दण्ड लिया हुआ दरवाजे पर खडा रहता है ! ( ३ ) पश्चिम के दरवाजे पर रक्त वर्ण शरीरवाला वारूण नामक ज्योतषी देव हाथ में पास लिया हुआ खडा रहता हैं । ( ४ ) उत्तर के दरवाजे पर श्याम वर्णमय कुबेर (धनद) नामकं भवनपति देव हाथ में गदा लिया हुआ खड़ा रहता हैं । ये 1 चारों देव समवसरण के रक्षार्थ खड़े रहते हैं । जया विजया जिया अपराजिति । सिअरूण पिय निल भा । बीए देवीज्जुअला । अभयंकूस पासमगर करा ॥ २० ॥ भावार्थ - दूसरे सुवर्ण प्रकोटे के प्रत्येक दरवाजे पर देवी युगल प्रतिहारके रूपमे स्थित हैं, जिनके नाम जया, विजया, अजिता, अपराजिता, क्रमशः उनके शरीर का वर्ण श्वेत, अरूण, (लाल ) पीत, (पीला) और नीला हाथमें अभय अंकुश पास और मकरध्वज, नामके चबध (शस्त्र ) है ।

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