Book Title: Samavsaran Prakaran
Author(s): Gyansundar Muni
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 18
________________ अतिशय. (१८) प्रभु जहां २ विचरते है वहां घूटने प्रमाण देवता सुगन्धित पुष्पोंकी वृष्टि करते है. (१९),, अशुभ वर्ण गन्ध रस और स्पर्श नष्ट हो जाते है. (२०),, शुभवर्ण गन्ध रस और स्पर्श प्राप्त हो जाते है... (२१) प्रभुकी वाणी एक योजन तक सुनाई देती है. ... (२२) प्रभु नित्य अर्ध मागधी भाषामें देशना देते है. (२३) प्रभुकी भाषा का ऐसा अतीशय है कि आर्य-अनार्य पशुपाक्षी आदि सब पर्षदाएं अपनी २ भाषामे बडी आसानी से समझ जाती है. - (२४) प्रभुके समवप्तरण में किसीको वैरभाव नहीं रहता है जो जातिवैर होता है वह भी छूट जाता है. . . (२५) पर वादि प्रभुके पास आते है वह पहले शीष नमाते हैं. (२६) शास्त्रार्थ में वादियों का पराजय होता है. .. (२७) इतीरोग ( तीडादि का गिरना ) नहीं होता है. (२८) मरी रोग ( प्लेग हैजादि ) नहीं होता है... (२९) स्वचक्र (राजा ) का भय नहीं होता है. . . , (३०) पर चक्र ( अन्य देश का राजा) का भय नहीं होता है, (३१) अतिवृष्टि ( अधिक वारिस ) नहीं होती है. (३२) अनावृष्टि ( बहुत कमवारिस) नहीं होती हैं.

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