Book Title: Samavsaran Prakaran
Author(s): Gyansundar Muni
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 23
________________ समवसरण प्रकरण. सिद्धान्तो में जल थल से उत्पन्न हुए पुष्पों का मूल पाठ होनेपर भी कितनेक महानुभाव उन पुष्पों को अचित बतलाते हुए कहते है कि वह पुष्प तो देवता वैक्रिय बनाते हैं । उन सजनों को सोचना चाहिए कि अगर वह पुष्प देवताओं के वैक्रिय बनाए हुए अचित होते तो शास्त्रकार जल थल से पैदा हुए नहीं कहते । इस से सिद्ध होता है कि समवसरण के अन्दर जो देवता पुष्पों की वृष्टि करते हैं वे जल थल से उत्पन्न हुए होनेके कारण वह पुष्प सचित हैं । अगर कोई सज्जन वनस्पतिकाय के जीवों का बचाव के लिए यह मन घटित कल्पना करले तो उन को सोचना चाहिए कि देवता पुष्प वैक्रिय बनाते है वह अठारा जाति के रत्नों को गृहन कर उन का मथन कर बादर पुद्गलों को छोड कर सुक्षम पुद्गलों के पुष्प बनाते हैं तो भी रत्न पृथ्वीकायमय है अगर वनस्पति के जीवों से बचोगे तो भी पृथ्वीकाय के जीवों की विराधना माननी पडेगी फिर भी वह वैक्रिय पुष्प एक योजन उपर से वरसने से भी असंख्य वायूकाय के जीवों की विराधना माननी पडेगी, इस से आप के अभिष्ट की तो किसी प्रकार से सिद्धी नहीं होती है फिर शास्त्रों के मूल पाठ को उत्थापन अर्थात् उत्सूत्र परूपना कर अनन्त संसारी बनने में क्या फायदा हुआ. . फिर भी देखिए । उववाई' सूत्र में “वन्दणवत्तियाए पूअणवत्तियाए" वन्दना भाव पूजा और पुष्पादि से द्रव्य पूजा करना मूल पाठ है तथा " नन्दी" और " अनुयोगद्वार" में

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