Book Title: Samavsaran Prakaran
Author(s): Gyansundar Muni
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ क्षमायाचना. उपार्जन कर सकते है। अगर कोई भी प्राण उस समवसरण की अनुमोदना करे वह भी सम्यक्त्वरुपी रत्न प्राप्त कर अनन्त पुन्य हांसल कर सक्ता है इतना ही नहीं पर भवान्तर में तीर्थंकरों के समव- . सरण का लाभ भी ले सक्ता है। समवसरण प्रकरण आवश्यक नियुक्ति-वृत्ति-चूर्णि आदि शास्त्रोंमें समवसरण का खूब विस्तारसे वर्णन है पर बालबोध के लिये पूर्वाचार्योंने प्राकृत भाषामें एक छोटासा प्रकरण रच दिया पर उसका लाभ साधारण ले नहीं सक्ता. इस लिये उस का अनुवाद हिन्दी भाषामें बनाके हम हमारे पाठकों के करकमलोमें रखनेकी चिरकाल से अभिलाषा कर रहे थे. उस को आज सफल कर यह लघु प्रकरण आप सज्जनों की सेवामें अर्पण किया जाता है आशा है कि इस उत्तम ग्रन्थको आद्योपान्त पढके समवसरण की भावना रखते हुवे भवान्तरमें साक्षात् समवसरण का शीघ्र दर्शन करे यह हमारी हार्दिक भावना है. क्षमा की याचना. छद्मस्थों के अन्दर अनेक त्रुटियोंका रहना स्वाभाविक वात है जिसमें भी मेरे जैसे अल्पज्ञ के लिये तो विशेष संभव है और मेरी मातृभाषा मारवाडी होनेसे उन शब्दों का विशेष प्रयोग आपके दृष्टिगोचर होगा तथापि हंस चंचुवत् गुण पहन कर अनुचितकी क्षमाप्रदान करे यह मेरी याचना है । शम् ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46