Book Title: Samavsaran Prakaran
Author(s): Gyansundar Muni
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ समवसरण प्रकरण. (३३) दुर्भिक्ष दुष्काल नहीं पडता है. (३४) इतीरोग से दुष्काल तक ७ अतिशय बतलाये है वह प्रभु विहार करे वहाँ पचवीस पंचवीस योजन तक नहीं होते है गर पहले हुवे हो तो भी प्रभुके पधारणे से नष्ट हो जाते हैं । यह सब बातें प्रभुके अतिशय के प्रभावसे हुआ करती है कारण उन्होंने पूर्वभव में वीस स्थानक की आराधना कर ऐसे जबर्दस्त पुन्योपार्जन किये थे कि वह विपाक उदय श्राने पर पूर्वोक्त प्रभावशाली पुन्यकर्म भी Best वश्य भोगना पडता है. प्रभुके समवसरण. जिस स्थान पर तीर्थंकर भगवान् को कैवल्यज्ञान उत्पन्न होता है वहां पर तो देवता अवश्य समवसरण कि रचना करते है और भी जहांपर धर्मकी शिथिलता हो व मिथ्यात्व और पाखण्डियों का विशेष जोर शोर हो वहाँपर भी देवता समवसरण की रचना किया करते है जैसे भगवान आदिनाथ के शासन में आठ समवसरण और परमात्मा महावीर प्रभुके शासन में बारह समवसरण शेष २२ तीर्थकरो के शासन में दो दो समवसरण एवं ८-१२-४४ मिलकर सब ६४ समवसरहुवे थे । १६ 7 समवसरण रचना का फल As समवसरण की रचना करनेसे देवता अनन्त पुन्योपार्जन करते है और उत्कृष्ट भावना श्रांने से कभी २ तीर्थंकर नामकर्म भी

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46