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7. प्रगाढ़ घातीकर्मों के विनाशक, अनन्तज्ञानी, अनुपम सुख
(मय) (तथा) त्रिभुवन में विद्यमान मुक्तिगामी जीवरूपी कमलों (के विकास) के लिए. सूर्यरूपी अरहंत जगत् में
जयवंत हों। 8. सिद्ध (जो) आठ प्रकार के कर्मों से रहित (हैं), (जिनके
द्वारा) (सभी) प्रयोजन पूर्ण किए हुए (हैं), (जिनके द्वारा) संसार-चक्र नाश को प्राप्त हुए (हैं), (तथा) (जिनके द्वारा) समग्र तत्वों के सार जाने गए हैं), (वे) मेरे लिए निर्वाण(मार्ग) को दिखलावें।
9. पाँच महाव्रतों से उन्नत, उस समय संबंधी अर्थात् समकालीन
स्व-पर सिद्धान्त के श्रुत को धारण करने वाले (तथा) अनेक प्रकार के गुण-गमूह से पूर्ण प्राचार्य मेरे लिए मंगलप्रद
हों।
10. (जिस अज्ञान रूपी अंधकार के) छोर पर पहुँचना कठिन
(है), (उस) अज्ञानरूपी घने अन्धकार में भ्रमण करते हुए संसारी (जीवों) के लिए (ज्ञानरूपी) प्रकाश को करने वाले उपाध्याय (मुझे) श्रेष्ठ मति प्रदान करें।
11. साधु (जो) यश-समूह से पूर्ण (है), (जिनके द्वारा) शील
रूपी मालाएँ दृढ़तापूर्वक धारण की गई (हैं), (जिनके द्वारा). राग दूर किए गए (हे) (तथा जिनके द्वारा) शरीर के अंग प्रचुर विनय से अलंकृत हुए हैं), (वे) मुझे (अनेक) सुख प्रदान करें।
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प्रात्म-स्वरूप को प्राच्छादित करने वाले कर्म । ..
चयनिका ]
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