Book Title: Samansuttam Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 164
________________ सम्बवन्वाग) [(सव्व)-(दव्व) 6/2] । उत्तमं (उत्तम) 1/11 (दव्वं) 1/1 । तच्चान, (तच्च)} 6/2 परं (पर) 11 वि। म (तच्च) 1/1 | जीवं (जीव) 1/1 | जाणेह (जाण) विधि 2/2 सक। णिच्छयो (रिणच्छय) पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय । 1. जिस समुदाय में से एक को छांटा जाता है, उस समुदाय में षष्ठी अथवा सप्तमी होती है। 101 जीवा (जीव) 1/2 । हवंति (हव) व 3/2 अक । तिविहा (तिविह) 1/2 वि । बहिरप्पा (वहिरप्प) 1/2 । तह य (म) = और । अंतरप्पा (अंतरप्प) 1/2 । य' (अ)=ौर । परमप्पा (परमप्प) 1/2 । विय (म) =और । दुविहा (दुविह) 1/2 वि । परहंता (अरहत) 1/21 सिया (सिद्ध) 1/2 । य (म)=ौर। 1. दो शब्दों को जोड़ने के लिए, कभी कभी 'और' अर्थ को व्यक्त करने वाले अव्यय दो बार प्रयोग किए जाते हैं । 102 अक्वाणि (अक्ख) 1/2 । बहिरप्पा (बहिरप्प) 1/1 । अंतरप्पा (अंतरप्प) 1/1 । हु (म)=ही। अप्पसंकप्पो [(अप्प)-(संकप्प) 1/1] । कम्मकलंक-विमुक्को [(कम्म)-(कलंक)-(विमुक्क) 1/1 वि] । परमप्पा (परमप्प) 1/1 । भण्णए (भण्णए) व कर्म 3/1 सक अनि । देवो (देव) 1/11 103 ससरीरा (ससरीर) 1/2 वि । अरहंता (अरहंत) 1/2 । केवलणालेज (केवलणाण) 3/1 । मुणिय-सयलत्यो [(मुरिणय)+ (सयल)+(मत्वा)] [(मुरिणय) भूक- (सयल) वि-(प्रत्थ) 1/2] | गाणसरीरा [(णाण)(सरीर) 1/2] । सिद्धा (सिद्ध) 1/2। सव्वुत्तम-सुक्ख-संपत्ता [(सव्व) +(उत्तम)+(सुक्ख)+ (संपत्ता)] [(सव्व) वि-(उत्तम) वि-(सुक्ख) (संपत्त) भूकृ 1/2 पनि । 104 मारहवि (प्रारुह+अवि) संकृ अपभ्रंश । अंतरप्पा. (अंतरप्प) 2/1 । चयनिका [. . [ 131 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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