Book Title: Samansuttam Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 163
________________ (अहिज्ज) संकृ । रओ (रअ) 1/1 वि । सुयतमहिए' [(सुय)-(समाहि) 7/1] । 1. समाहीए+समाहिए, विभक्ति जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में ह्रस्व कर दिये जाते हैं। (पिछलः प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ 182)। . 98 बसे (वस) व 3/1 अक । गुरुकुले [(गुरु)-(कुल) 7/1] । पिच्चं (अ) = सदा। बोगवं (जोगवन्त-जोगवन्तो जोगवं)-/1 वि । उवहाणवं' (उवहाणवन्त-उवहाणवन्तो+उवहाणवं) 1/1 वि । पियकरे (पियंकर) 1/1 वि । पियंवाई (पियंवाइ) 1/1 वि । से (त) 1/1 सवि । सिक्खं (सिक्ख) 2/1 । लधुमरिहई (लधु)+ (अरिहई)] । लक्षु (लघु) हेव अनि । अरिहई (परिह) व 3/1 सक । 1. अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ, 427 2. पूरी या आधी गाथा के अन्त में पाने वाले क्रियापद के 'इ' को .. 'E' कर दिया जाता है (पिशल: प्रा. भा. व्या. पृष्ठ 138)। 99 मह (प्र) = जैसे । बीका' (दीव)5/1 । वीवसयं ] (दीव)-(सय)1/1]। पपए (पाप) 3/I का सो (त) 1/1 सवि । य (अ) = और । विप्पए (दिप्प) 23/1मक 1 दीवो (दीव) 1/1 । वीवसमा [(दीव)(सम) 1/2] वि] | मायरिया (मायरिय) 1/2 । विप्पंति (दिप्प) व 3/2 अक। परं (पर) 2/11 (म)=ौर । बीति (दीव) व 3/2 सक। 1. किसी कार्य का कारण व्यक्त करने वाली (स्त्रीलिंग भिन्न) संज्ञा ___तृतीया या पंचमी का प्रयोग होता है। 2. कभी कभी बहुवचन का प्रयोग सम्मान अथ्वा भक्ति प्रकट करने के लिए होता है। 100 तमगुणाग [(उत्तम) वि-(गुण) 6/2] । धाम (धाम) 1/1 । 130 [ तमणसुतं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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