Book Title: Samansuttam Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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118 सम्मत्तविरहिया [ (सम्मत्त)-(विरहिय) भूक 1/2 अनि] । गं (म)=
वाक्यालंकार । सुछ (म)=प्रत्यन्त । वि (अ) = भी । उग्गं (उग्ग)2/1 वि । तवं (तव) 2/1। चरंता (चर) वकू 1/2गं (अ)- वाक्यालंकार । ग (म)= नहीं। लहंति (लह) व 312 सक । बोहिलाह
[ (वोहि)-(लाह) 2/1] । अवि (म) = भी ॥ वाससहस्सको हि . [ (वास)-(सहस्स) वि-(कोडि)1 3/2] । ___ 1 कभी कभी सप्तमी के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया
जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-135)। . 119 सणसुखो [(दसण)-(सुद्ध) भूकृ 1/1 अनि] । सुखो' (सुढ) भूक 1/1
अनि । लहेइ (लह) व 3/1 सक। णिवाणं (णिव्वाण) 2/11 सणविहीण [(दंसण)-(विहीण) मूल शब्द मुक 1/1 अनि । पुरिसो (पुरिस) 1/1। न (अ) = नहीं। लहइ (लह) व 3/1 सक । तं (त) 2/1 स । इच्छियं (इच्छ+इच्छिंय) भूक 2/1 | लाहं (लाह) 2/1।
_1. शुद्ध- सुद्ध = अद्वितीय (प्राप्टे ; संस्कृत-हिन्दी कोष) । 120 सम्मत्तस्स (सम्मत्त) 6/1। य (प्र) = एक मोर । संभो (लंभ) 1/1।
तेलोक्कस्स (तेलोक्क) 6/11 य (प्र) =दूसरी पोर। हवेज' (हव) विधि 3/1 अक । जो (ज) 1/1 सवि । सम्मइंसणलंमो [(सम्मदंसण)(लंभ) 1/1] । वरं (म)= अधिक अच्छा। दु (अ) = निस्सन्देह । तेलोक्कलंभावो [(तेलोक्क)-(लंभ) 5/1] । ___ 1. प्राकृत के क्रियापद में 'ज्ज' और 'ज्जा' प्रत्यय जोड़ने पर
- अन्त्यस्थ स्वर 'अ' के स्थान पर 'ए' हो जाता है (हेम प्राकृत
व्याकरण : 3-159, 3-177)। 121 किं (किं)1/1 सवि । बहुणा (बहु)3/1 वि । भणिएवं (भण भणिय)
भूक 3/11 (म) = पादपूरक । सिता (सिद्ध) भूक 1/2 पनि ।
परवरा [(णर)-(वर) 1/2 वि] । गए (गप्र) भूक 7/1 अनि । काले 136 ]
[ समणसुत्तं
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