Book Title: Samansuttam Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 183
________________ स। भुवणेक्कगुरुणो' [(भुवण)+(एक्क) + (गुरुणो)] [(भुवण)(एक्क) वि-(गुरु) 4/1] । गमो (प्र) = नमस्कार । अणेगंतवायस्स' [(अणेगंत)-(वाय) 4/1] । __2. 'णमो' के योग में चतुर्थी होती है। 167 जम्हा (अ)= चूकि । ग (प्र)=नहीं। गएण (णन) 3/1। विणा - (अ)=बिना । होइ (हो) व 3/1 अक । परस्स (णर)6/1 । सियवाय परिवत्ती [(सियवाय)-(पडिवत्ति) 1/1] । तम्हा (प्र)=इसलिए । सो (त) 1/1 स । बोहव्वो (बोहव्वो) विधिकृ 1/1 अमि । एयंत (एयंत) 2/1 | हतुकामेण (हंतुकाम) 3/1 वि । 1. बिना के योग में तृतीया, द्वितीया या पंचमी विभक्ति होती है। 168 गाणाधम्मजुवं [(णाणा') वि-(धम्म)-(जुद) भूक 1/1 अनि । पि (प्र) = निश्चय ही। य (अ)= और । एयं (एय) 1/1 वि । धम्म (धम्म) 1/1 । पि (अ) = ही । वुच्चदे (वुच्चदे) वकर्म 3/1 सक अनि । अत्यं (प्रत्थ)1/1 | तस्सेयविवक्खादो[(तस्स) + (एय) + (विवक्खादो)] तस्स (त) 6/1 स । [(एय) वि-(विवक्ख) 5/1] | गस्थि (म)= नहीं। विवक्खा (विवक्खा) 1/11 ह (प्र)=क्योंकि । सेसाणं (सेस) 6/2 वि। ___1. समास के प्रारम्भ में विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है । (संस्कृत ___ हिन्दी कोश) 169 सयं (स) स्वार्थिक 'य' प्रत्यय 2/1 वि । पसंसंता (पसंस) वकृ.1/2 । गरहंता (गरह) व 1/2.1 परं (पर) 2/1 वि । वयं (वय) 2/1' जे (ज) 1/2 स । उ (अ)= पादपूर्ति । बिउमति (विउस्स) 3/2 मक । तत्थ (अ)-उस अवसर पर । संसारं (ससार) 2/11 ते (त) __ 1. सप्तमी विभक्ति के स्थान पर कभी कभी द्वितीय चिनक्ति का प्रयोग होता है। 150 ] [ समणसुत्तं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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