Book Title: Samansuttam Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 167
________________ 4/2 । गुरुमेयं [(गुरु) वि-(भेय) 1/1] । 112 खयरामरमणुय-करंजलि-मालाहि [ (खयर)+ (अमर)+ (मणुय) + (कर)+ (अंजलि) + (मालाहिं)] [(खयर)-(अमर)-(मणुय)-(कर) (बंजलि)-(माला) 3/2] | च (प्र) =निस्सन्देह । संपया (संयुय स्त्री संथुया) भूक 1/1 अनि । विउला (विउल-विउला) 1/1 कि। चक्कहररायलच्छी [(चक्कहर)-(राय)-(लच्छी) 1/1] । लभई (लगभइ) व कर्म 3/1 सक अनि । बोही (बोहि) 1/1। ए (अ)= नहीं। भवणुमा [(भव्य) + (अणुमा)] [(भव्व)-(अणुप्रसा )1/1 वि] । 1. मात्रा के लिए 'इ' को 'ई' किया गया है। 2. अणुग→अणुप्र= अनुसरण करने वाला (प्राप्टे : संस्कृत-हिन्दी कोष)। 113 नाणं (नाण) 2/1 चरितहीगं [(चरित्त)-(हीण) भूक 2/1 पनि] । लिंगग्गहणं [(लिंग)-(ग्गहण) 2/1] 14 (4)= मोर । सनविहीनं [ (दंसण)-(विहीण) भूक 2/1 भनि । संबमहीनं. [ (संजम)-(हीण) भूकृ 2/1 | तवं (तव) 2/1। जो (ज) 1/1 सवि । परइ (चर) व 3/1 सक । निरत्ययं (निरत्थय) 1/1 वि । तस्स (त) 4/1 स। 114 नावंसणिस्स [ (न) + (अदंसणिस्स) ] न (प्र) = नहीं । प्रसारणस्स (प्रदंसरिण)4/1 वि । नाणं (नाण)1/1 | नाणेकर (नाण)3/11 बिना (अ)= बिना । न (अ) = नहीं । हुंति(हु) 43/2 प्रक। परमगुणा(परण) -(गुण) अगुणिस्स (अगुणि) 4/1 वि । नस्थि (4)= नहीं। मोक्लो (मोक्ख)1/1 | अमोक्खस्स (प्रमोक्ख)4/1 | निम्या (निव्वाण)1/11 1 'बिना' के योग में तृतीया भी होती है। 134 ] [ समापन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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