Book Title: Samansuttam Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 180
________________ चेव (प्र) = निश्चय हीच तछुढीकरी [(त)-(बुड्ढीकरी) 1/1 वि] । एगंतसुहावहा [(एगंत) + (सुह) + (प्रावहा)] [(एगंत) वि स्त्री (सुह)-(भावह पावहा) 1/1 वि]। 157 जयं (क्रिविन) = जागरूकतापूर्वक । चरे (चर) विधि 3/1 सक । चिट (चिट्ठ) विधि 3/1 अक । अयमासे [ (जयं) + (मासे) ] जग (क्रिवित्र) = जागरूकतापूर्वक प्रासे (मास) विधि 3/1 मक । सए (सम) विधि 3/1 अक । भुजतो (भुज) वकृ 1/1 | भासतो (भास) वकृ 1/1 पावं (पाव) 2/1 वि । कम्मं (कम्म) 2/1। न (अ) = नहीं। बंधा (बंध) व 3/1 सक। 158 गाणेण (णाण) 3/1। उमाणसिम्झी [(झाण)-(सिज्झि) 1/1] . झाणादो (झाण) 5/1। सम्बकम्मणिम्जरणं [(सव्व) वि-(कम्म)(रिणज्जरण) 1/1] । णिज्जरणफलं [(णिज्जरण)-(फल) 1/1] ! मोक्खं (मोक्ख) 1/1 | णाणमासं [(णाण)+(प्रभास)] [(णाण) (अब्भास) 2/1] । तदो (अ)=इसलिए । कुज्जा (कु) विधि 3/1 सक। 159 नाणमयवायसहिओ [(नाणमय) वि-(वाय)-(सहिम) 1/1 वि] । सोलुज्जलिओ [(सील)+ (उज्जलिसो)] [(सील)-उज्जल) भूकृ1/11 तवो (तव) 1/1। मनो (मप्र) 1/1 वि। अग्गी (अग्गि) 1/1। संसारकरणबीयं [(संसार)-(करण) वि-(बीय) 2/1] । वहइ (दह) व 3/1 सक ! बवग्गी (दवग्गि) 1/1 । व (अ)=जैसे कि । तणरासि [(तण)-रासि) 2/1] । 160 लवण (लवण) मूल शब्द । म्व (अ) =जैसे । सलिलजोए [(सलिल) (जोन) 7/1] । झाणे (झाण) 7/1.। चित्तं (चित्त) 1/1 | विलीयए . 1 कर्ता कारक के स्थान में केवल मूल संज्ञा शब्द भी काम में लाया जा सकता है। (पिशल : प्राकृत भाषामों का व्याकरण : पृष्ट 518) .... चयनिका ] [ 147 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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