Book Title: Samansuttam Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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115 हयं ( हय) 1 / 1 वि | नाणं ( नारा ) 1 / 1 | कियाहीणं [ ( किया ) - ( ही ) 1 / 1वि ] | हया ( हया ) 1 / 1 वि । अण्णाणओ ( अण्णाण अण्णारणाओ→ orna) 5 / 1 | किया ( किया ) 1 / 1 । पासंतो (पास) वकृ 1 / 1 | पंगुलो (पंगुल) 1 / 1 वि । वड्ढो ( दड् ढ ) भूकृ 1 / 1 अनि । धावमाणों (धाव) वकृ य (श्र) = ओर । अंधओ (अंध) 1 / 1 वि ।
1 / 1
1 विभक्ति जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में ह्रस्व हो जाते हैं । ( पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 82 )
। फलं ( फल ) = 2 / 1 । वयंति
1
116 संजोअसिद्धीइ [ ( संजोन) - सिद्धि) 7 / 1 ] ( वय ) व 3 / 2 सक । न ( प्र ) = नहीं । हु ( अ ) = क्योंकि । एगचक्केण [ (एग ) वि - ( चक्क ) 3 / 1]। रहो ( रह ) / 1 । पयाइ ( पया) व 3 / 1 अंक 1 अंध (अंध) 1 / 1 वि । य ' ( अ ) = और। पंगू (पंगु ) 1 / 1 वि । वरले (वरण) 7 / 1 | समिच्चा ( समिच्चा) संकृ प्रनि । ते (त) 1 / 2 स । संपउत्ता ( संपत्त ) 1/2 वि । नगरं ( नगर ) 2 / 1 | पविट्ठा ( पविट्ठ) भूकृ 1 /2 अनि ।
1
I
1. दो शब्दों को जोड़ने के लिए कभी कभी दो 'य' का प्रयोग 'और'अर्थ में किया जाता है ।
2. सभी गत्यार्थक क्रियाओं के योग में द्वितीया विभक्ति होती है । 3. यहां भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्तृवाच्य में है । जाना, चलना अर्थ की क्रियाओं में भूतकालिक कृदन्त कर्तृवाच्य में भी होता है ।
117 जीवादी' [ (जीव) + (प्रादी ) ] [ (जीव ) - ( प्रादि ) 2 / 2 ] | सद्दहणं (सद्दहणं) 1 / 1 | सम्म (सम्मत) 1 / 1 । जिणवरेहिं ( जिरणवर ) 3 / 2 । पण्णत्तं ( पण्णत्त) भूकृ 1 / 1 अनि । ववहारा ( ववहार ) 5 / 11 णिच्छयदो (छ) पंचमी अर्थ 'दो' प्रत्यय | अप्पा (अप्प ) 1 / 1 1 णं ( अ ) = ही । वह ( हव) व 3 / 1 अक | सम्मरी ( सम्मत्त ) 1 / 1 ।
1 'श्रद्धा' के योग में द्वितीया का प्रयोग होता है ।
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