Book Title: Samansuttam Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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(हो) व 3/1 प्रक। अप्पमत्तो (अप्पमत्त) 1/1 वि। पहिसगो (अहिंसम) 1/1 वि। हिंसगो (हिंसग) 1/1 वि। इसरो (इदर)
1/1 वि। 85 तुंग (तुग) 1/1 वि। न (अ) = नहीं। मंदराओ (मंदर) 5/1
आगासाओ (पागास) 5/1। विसालयं (विसाल) स्वार्थिक 'य' प्रत्यय |1 वि । नत्यि (अ) = नहीं । जह (अ) =जैसे। तह (अ) = वैसे ही । जयंमि (जय) 7/1 । नागसु (जाण) विधि 2/1 सक । पम्महिसासमं [(धम्म)+(महिंसा)+(सम)] धम्म (धम्म) 1/1 [(अहिंसा)-(सम)
1/1 वि] । 86 इमं (इम) 1)1 सवि । च' (अ) और । मे (अम्ह) 6/1 स । अस्थि
(प्र) = है । नत्वि (म)= नहीं। च (अ) =ोर । मे (अम्ह) 6/1 स । 'किन्छ (किच्च) 1/1 । अकिच्चं (मकिच्च) 1/1 । तं (त) 2/1 सवि । एवमेवं [ (एवं) x एवं)] एवं (म)-इस प्रकार एवं (प्र)=ही। लालप्पमाणं (लालप्प) वक 2/1 | हरा (हर) 1/2। हरंतित्ति [(हरंति) + (इति) ] हरंति (हर) व 3/2 सक. इति (म)= मतः । कहं (म) = कैसे । पमाए (पमाय) 1/1। । - 1. दो वाक्यों को जोड़ने के लिए कभी कभी दो 'च' का प्रयोग
. 'मोर' पर्थ में किया जाता है। 2. कभी कभी बहुवचन का प्रयोग सम्मान प्रदर्शित करने के लिए
किया जाता है (हर=मृत्यु का देवता= काल)। 87 सीतंति (सीत) व 3/2 सक । सुवंतानं (सुव) व 6/21 प्रत्या (प्रय)
1/2। पुरिसान (पुरिस) 6/21 लोगसारत्ता [(लोग)+(सार)+ (प्रत्या)] [(लोग)-(सार)-(प्रत्य) 1/2] । तम्हा (अ) = इसलिए । मागरमाना (जागर) व 1/2। विनय (विधुण) विधि 2/2 सक । पोराभयं (पोराण) स्वार्षिक 'य' प्रत्यय 2/1 वि । कम्म (कम्म) 2/11
126 ]
[ समगनुतं
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