Book Title: Samansuttam Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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व्याकरणिक विश्लेषण 1 णमो' (अ) = नमस्कार । अरहताणं' (अरहंत) 4/2 । सिद्धाणे (सिद्ध)
4/2। आयरियाणं (प्रायरिय) 4/2। उवझायाणं (उवज्झाय). 4/21 लोए (लोस) 7/1 । सव्वसाहूणं' [(सव्व) वि-(साहू) 4/2] । __ 1. णमो' के योग में चतुर्थी होती है। 2 एसो (एत) 1/1 सवि । पंचणमोक्कारो [ (पंच) वि-(णमोक्कार)
1/1] । सव्वपावप्पणासणो [(सव्व) वि-(पाव)-(प्पणासण) 1/1 वि] । मंगलाणं (मंगल) 6/2। च (अ)=ोर । सन्वेसि (सव्व) 6/2 वि । पढमं (पढम) 1/1 वि । हबइ (हव) व 3/1। अक मंगलं (मंगल) 1/11 1. जिस समुदाय में से एक छांटा जाता है उस समुदाय में षष्ठी
अथवा सप्तमी होती है। .. 3-5 अरहंता (अरहत) 1/2। मंगलं (मंगल) 1/1। सिद्धा (सिद्ध) 1/2 ।
साहू (साहु) 1/2 । केवलिपण्णत्तो [(केवलि)-(पण्णत्त) भूकृ 1/11 अनि । धम्मो (धम्म) 1/11 लोगुत्तमा [(लोग) + (उत्तमा)] [(लोग)-(उत्तम)1/2 वि] | लोगुत्तमो [(लोग)+ (उत्तमो)] [(लोग)-(उत्तम) 1/1 वि ] । अरहंते (अरहत) 2/2 । सरणं (सरण) 2/1 । पव्वज्जामि (पन्वज्ज) व 1/1 सक । सिख (सिद्ध) 2/2। साहू (साहु) 2/2 । केवलिपग्णत्त [(केवलि)-(पण्णत्त) भूक 2/1 अनि । धम्म (धम्म) 2/1।
1. 'जाना' अर्थवाली क्रियानों के साथ द्वितीया होती है । 6 झायहि (झाय') विधि 2/1 तक । पंच (पंच) 2/2 वि। वि (अ) =
ही । गुरवे (गुरव) 2/2 । मंगलचउसरणलोयपरियरिए [ (मंगल) वि
104 ]
[ समणसुत्तं
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