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17. जिसकी गुरु में भक्ति नहीं (है) तथा (जिसका गुरु के प्रति)
अतिशय आदर नहीं (है) (और) गौरव-भाव नहीं (है) तथा (जिसको गुरु से) भय नहीं (है), लज्जा नहीं (है) और प्रेम
नहीं है, उसका गुरु के सान्निध्य में रहने से क्या लाभ है ? . 13. इन्द्रिय-भोग निश्चय ही अनर्थों की खान (होते हैं); क्षण
भर के लिए सुखमय (तथा) बहुत समय के लिए दुःखमय (होते हैं); अति दुःखमय (तथा) अल्प सुखमय (होते हैं); (वे) संसार-(सुख) और मोक्ष-(सुख) (दोनों) के विरोधी
बने हुए (है)। 19. खूब अच्छी प्रकार से खोजे जाते हुए भी जैसे केले के पेड़ में
कहीं सार नहीं होता है), वैसे ही इन्द्रिय-विषयों में सुख नहीं (होता है), यद्यपि (वह) (वहाँ) खूब अच्छी प्रकार से खोजा हुआ (होता है)।
जैसे खाज-रोगवाला खाज को खुजाता हुआ दुःख को सुख · मानता है, वैसे ही मोह-(रोग) से पीड़ित मनुष्य इच्छा (से उत्पन्न) दुःख को सुख कहते हैं।
20. जस
21. अज्ञानी, मन्द और मूढ (व्यक्ति) (जो) भोग की लालसा के ___. दोष में डूबा हुआ (हैं), जिसकी (स्व-पर) कल्याण तथा
अभ्युदय में विपरीत बुद्धि (है), (वह). (अशुभ कर्मों के द्वारा)
बाँधा जाता है, जैसे कफ के द्वारा मक्खी (बाँधी जाती है)। 22. जन्म, जरा, मरण से खूब उत्पन्न दुःख (यद्यपि) जाना जाता
है, विचारा जाता है, फिर भी विषयों से निर्लिप्त नहीं हुआ जाता है । आश्चर्य ! कपट (मूर्छा) की गाँठ दृढ़ बाँधी हुई है।
चयनिका ]
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