Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्य कथाओं के श्रवण करने में समय को न देकर उस शत्रु सेना के पराजय करने में सावधान होकर यत्न पर हो जावो। यद्यपि निमित्त बली तर्क द्वारा बहुतसी आपत्ति इस विषय में ला सकते हैं। फिर भी कार्य करना अंत में तो आपही का कर्तव्य होगा। अतः जब तक आपकी चेतना सावधान है, निरंतर स्वात्मस्वरूप चिंतवन में लगादो । श्री परमेष्ठीका भी स्मरण करो किन्तु ज्ञायक की ओर ही लक्ष्य रखना क्योंकि मैं "ज्ञाता दृष्टा" हूं, ज्ञेय भिन्न हैं, उसमें इष्टानिष्ट विकल्प न हो यही पुरुषार्थ करना और अंतरंग में मूर्छा न करना तथा रागादिक भावों को तथा उसके वक्ताओं को दूरही से त्यागना। मुझे आनंद इस बात का है कि आप निःशल्य हैं। यही आपके कल्याण की परमौषधि है। ॥ इति ॥ For Private and Personal Use Only

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