Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२ ) पत्र नं. २ श्रीयुत महानुभाव पं. दीपचंद जी वर्णीइच्छाकार ! कारणकूट अनुकूल के असद्भाव में पा नहीं दे सका । क्षमा करना आपने जो पत्र लिखा वास्तविक पदार्थ ऐसा ही है। अब हमें आवश्यकता इस बात की है कि प्रभू के उपदेश के अनुकूल प्रभू की पूर्वावस्थावत् आचरण द्वारा प्रभुइव प्रभुता के पात्र हो जावें यद्यपि अध्यवसान भाव पर निमित्तक हैं । यथान जातु रागादिनिमित्त भावमात्मात्मनो याति यथार्ककान्तः ॥ तस्मिन् निमित्तं पर संग एव वस्तु स्वभावोऽयमुदति तावत् ॥ आत्मा, प्रात्मा संबंधी रागादिक की उत्पत्ति में स्वयं कदाचित् निमित्तता को प्राप्त नहीं होता है अर्थात् आत्मा स्वकीय रागादिक के उत्पन्न होने में अपने आप निमित्त कारण नहीं है किन्तु उनके होने में परवस्तु ही निमित्त है जैसे अर्ककान्त मणि स्वयं अग्निरूप नहीं परणमता है किन्तु सूर्य किरण उस परिणमन में कारण है। तथापिसत्ता परमार्थ की For Private and Personal Use Only

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