Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३९ ) आश्चर्य की बात है कि आत्मा की स्वभाव महिमा विजय प्राप्त होती है। इत्यादि अनेक पद्ममय भावों से यही अन्तिम करन प्रतिमा का विषय होता है जो आत्म द्रव्य ही की विचित्र महिमा है। चाहे नाना दुःखाकीर्ण जगत में नाना वेष धारण कर नटरूप बहुरूपिया बने । चाहे स्वनिर्मित सम्पूर्ण लीला को सम्बरण करके गगन वत् पारमार्थिक निर्मल स्वभाव को धारण कर निश्चल तिष्ठे। यही कारण है। "सर्वं वै खाल्विदं ब्रह्म” अर्थ-यह संपूर्ण जगत् ब्रह्म स्वरूप है। इसमें कोई सन्देह नहीं, यदि वेदान्ती एकान्त दुराग्रह को छोड़ देवें । तब जो कुछ कथन है अक्षरशः सत्य भासमान होने लगे। एकान्तदृष्टि ही अन्धदृष्टि है। आप भी अल्पपरिश्रम से कुछ इस ओर आईये। भला यह जो पंच स्थावर और त्रस का समुदाय जगत दृश्य हो रहा । क्या है ? क्या ब्रह्म का विकार नहीं ? अथवा स्वमत की ओर कुछ दृष्टि का प्रसार कीजिये । तब निमित्त कारण की मुख्यता से ये जो रागादिक परिणाम हो रहे हैं। उन्हें पौद्गलिक नहीं कहा है । अथवा इन्हें छोड़िये । जहां अवधिज्ञान का विषय निरूपण किया है वहां क्षयोपशम भाव को भी अवधिज्ञान का विषय कहा है। अर्थात् रूपी पुद्गल द्रव्य सम्बन्धेन जायमानत्वात् क्षायोपशिक भाव भी For Private and Personal Use Only

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