Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२ ) सर्वथा निर्मूल हो गई किन्तु अभी जो योग निमित्तक परिस्पन्दन है वह प्रदेश प्रकम्पन को करता ही रहता है। तथा तन्निमित्तक ईर्यापथास्रव भी साता वेदनीय का हुआ करता है । यद्यपि इसमें प्रात्मा के स्वाभाविक भाव की क्षति नहीं। फिर भी निरपवर्त्य अायु के सद्भाव में यावत् अायु के निषेक हैं नावत् भव स्थिति को मेंटने को कोई भी क्षम नहीं। तब अन्तमुहूर्त आयु का अवसान रहता है। तथा शेष जो नामादिक कर्म की स्थिति अधिक रहती है, उस काल में तृतीय शुक्लध्यान के प्रसाद से दंडकपाटादि द्वारा शेष कर्मों की स्थिति को आयु समकर चतुर्दश गुणस्थान का आरोहण कर अयोग नाम को प्राप्त करता हुआ लघु पंचाक्षर के उच्चारण के काल सम गुणस्थान का काल पूर्ण कर चतुर्थध्यान के प्रसाद से शेष प्रकृतियों को नाश कर परमयथाख्यात चारित्र का लाभ करता हुअा १ समय में द्रव्य मुक्ति व्यपदेशता को लाभकर मुक्ति साम्राज्य लक्ष्मी का भोक्ता होता हुआ लोक शिखर में विराजमान होकर तीर्थंकर प्रभु के समव शरण का विषय होकर हमारे कल्याण में सहायक हो । यही हम सबकी अन्तिम प्रार्थना है। For Private and Personal Use Only

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