Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६ ) ही रहते हैं। आपका धन्य भाग्य है। जो बिन ही निग्रंथ पद धारण के कर्मों का ऐसा लाघव हो रहा जो स्वयमेव उदय में आकर पृथक् हो रहे हैं। इस जितना हर्षमुझे है । नहीं कह सकता, वचनातीत है आपके ऊपर से भार उठ रहा है फिर आपके सुखकी अनुभूति तो आपही जाने । शांति का मूल कारण न साता है और न असाता, किन्तु साम्यभाव है। जो कि इस समय आपके हो रहे हैं । अब केवल ब्रह्मानुभव ही रसायन परमौषधि है। कोई कोई तो क्रम क्रम से अन्नादि का त्याग कर समाधिमरण का यत्न करते हैं। आपके पुण्योदय से स्वयमेव वह छूट गया। वही न छूटा साथ साथ असातोदय द्वारा दुखजनक सामग्री का भी अभाव हो रहा है। अतः हे भाई! आप रंचमात्र क्लेश न करना, जो वस्तु पूर्व अर्जित है यदि वह रस देकर स्वयमेव आत्मा को लघु बना देती है। इससे विशेष और आनन्द का क्या अवसर होगा। मुझे अंतरंग से इस बात का पश्चात्ताप हो जाता है, जो अपने अंतरंग बन्धु की ऐसी अवस्था में वैयावृत्त्य न कर सका। प्रा. शु. चिं. माघ व०१४ सं: ९४ गणेशप्रसाद वर्णी ॥ इति ॥ For Private and Personal Use Only

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