Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८ ) यों कहिये । अपनी अनन्तशक्ति के विकाश का बाधक प्रापही मोहकर्म द्वारा करा रहा है फिर भी हम ऐसे अन्धे हैं जो मोह की महिमा आलाप रहे हैं। मोह में बलवत्ता देनेवाली शक्तिमान वस्तु की ओर दृष्टि प्रसार कर देखो तो धन्य उस अचिन्त्य प्रभाव वाले पदार्थ को कि जिसकी वक्र दृष्टि से यह जगत अनादि से बन रहा है । और जहां उसने वक्र दृष्टि को संकोच कर एक समय मात्र सुदृष्टि का अवलम्बन किया। कि इस संसार का अस्तित्व ही नहीं रहता । सो ही समयसार में कहा है कलशाकषाय कलिरेकतः शान्तिरस्त्येकतो । भवोपहतिरेकतः स्पृशति मुक्तिरप्येकतः ॥ जगत्रितयमेकतः स्फुरति चिच्चकास्त्येकतः । स्वभाव महितात्मनो विजयतेऽद्भुतादद्भुतः ॥ अर्थ। एक तरफ से कषाय कालिमा स्पर्श करती है और एक तरफ से शान्ति स्दर्श करती है। एक तरफ संसार का अघात है और एक तरफ मुक्ति है। एक तरफ तीनों लोक प्रकाशमान है और एक तरफ चेतनात्मा प्रकाश कर रहा है। यह बड़े For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63