Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७ ) उसका अभाव होजाता है और तब आत्मा अपने स्वच्छ स्वरूप होकर इन संसार की वासनावों का पात्र नहीं होता। मैं आपको क्या लिखू । यही मेरी सम्मति है-जो अब विशेष विकल्पों को त्यागकर जिस उपाय से रागद्वेष का प्राशय में अभाव हो वही आपका व मेरा कर्तव्य है। क्योंकि पर्याय का अवसान है। यद्यपि पर्याय का अवसान तो होगा ही किन्तु फिर भी सम्बोधन के लिये कहा जाता है तथा मूढ़ों को वास्तविक पदार्थ का परिचय न होने से बड़ा आश्चर्य मालूम पड़ता है। विचार से देखिये-तब अाश्चर्य को स्थान नहीं । भौतिक पदार्थों की परिणति देखकर बहुत से जनतुम्ध हो जाते हैं। भला जब पदार्थ मात्र अनन्त शक्तियों का पुंज है। तब क्या पुद्गल में वह बात न हो, यह कहां का न्याय है। अाजकल विज्ञान के प्रभाव को देख लोगों की श्रद्धा पुद्गल द्रव्य में ही जाग्रत हो गई है। भला यह तो बिचारिये । उसका उपयोग किसने किया। जिसने किया उसको न माननायही तो जड़भाव है। बिना रागादिक के कार्माण वर्गणा क्या कर्मादि रूप परिणमन को समर्थ हो सकती है ? तब For Private and Personal Use Only

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