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( ३५ ) अतः हे भाई। ग्राप सर्व उपद्रवों के हरण में समर्थ और कल्याण पथ के कारणों में प्रमुख जो आपकी दृढ़तम श्रद्धा है वह उपयोगिनी कर्म शत्रु वाहिनी को जयनशीला तीक्ष्ण असिधारा है । मैं तो आपके पत्र पढ़कर समाधिमरण की महिमा अपने ही द्वारा होती है।
निश्चय कर चुका हूं। क्या आप इससे लाभ न उठावेंगे । अवश्य ही उठावेंगे।
आ० शु० चि० बाबाजी का इच्छाकार गणेशप्रसाद वर्णी ।
श्रा० व० १ सं: ९४ । नोट-मैं विवश होगया । अन्यथा अवश्य आपके
समाधिमरण में सहकारी हो पुण्यलाभ करता। आप अच्छे स्थान पर ही आवेंगे । परन्तु पंचम काल है । अतः हमारे सम्बोधन के लिये आपका उपयोग ही इस ओर न जावेगा। अथवा जावेगा ही। तब कालकृत असमर्थता बाधक होकर आपको न शांति देगा। इससे कुछ उत्तरकाल की याचना नहीं करता।
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