Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३४ ) लाभ। हम बिचारे इस भाव से हम कहां जावेंगे इस पर ही विचार करना चाहिये। आपका सच्चिदानंद जैसा आपकी निर्मल दृष्टि ने निर्णीत किया है द्रव्य दृष्टि से वैसा ही है। परंत द्रव्य तो भोग्य नहीं, भोग्य तो पर्याय है अतः उसके तात्विक स्वरूप के जो साधक हैं उन्हें पृथक् करने की चेष्टा करना ही हमारा पुरुषार्थ है। चोर की सजा देखकर साधु को भय होना मेरे ज्ञान में नहीं आता। अतः मिथ्यात्वादि क्रिया संयुक्त प्राणियों का पतन देख हमें भय होने की कोई भी बात नहीं- हमको तो जब सम्यक रत्नत्रय की तलवार हाथ में आगई है और वह यद्यपि वर्तमान में मौथरी धारवाली है। परंतु है तो असि । कमधन को धीरे २ छेदेगी । परंतु छेदेगी ही बड़े अानंद से । जीवनोत्सर्ग करना, अंस मात्र भी आकुलता श्रद्धा में लाना प्रभु ने अच्छा ही देखा है । अन्यथा उसके मार्ग पर हम लोग न आते । समाधिमरण के योग्य द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव क्या पर निमित्त ही हैं ? नहीं। जहां अपने परिणामों में शांति आई । आई। वहीं सर्व सामग्री है। For Private and Personal Use Only

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