Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २४ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ० पत्र नं. ३ श्रीयुत महाशय दीपचंद जी वर्णी-योग्य इच्छाकार ! आपका पत्र आया । आपके पत्र से मुझे हर्ष होता है और आपको मेरे पत्र से हर्ष होता है । यह केवल मोहज परिणाम की वासना है । आपके साहस ने आपमें अपूर्व स्फूर्ति उत्पन्न कर दी है । यही स्फूर्ति आपको संसार यातनाओं से मुक्त करेगी । कहने और लिखने और वाक् चातुर्य में मोक्ष मार्ग नहीं । मोक्षमार्ग का अंकुर तो अंतःकरण से निज पदार्थ में ही उदय होता है । उसे यह परजन्य मन, बचन, काय क्या जानें। यह तो पुद्गल द्रव्य के विलास हैं जहां पर इन पुद्गल की पर्यायों ने ही नाना प्रकार के नाटक दिखाकर उस ज्ञाता दृष्टा को इस संसार चक्र का पात्र बना रक्खा है । अतः अब तमोराशि को भेदकर और चन्द्र से परपदार्थ जन्य ताप को शमन कर सुधा समुद्र में अवगाहन कर वास्तविक सच्चिदानंद होने की योग्यता के पात्र बनिये । वह पात्रता आपमें है । केवल साहस करने का विलंब है । अब इस अनादि संसार जननी कायरता को- दग्ध करने से For Private and Personal Use Only

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