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( २५) ही कार्य सिद्धि होगी। निरन्तर चिन्ता करने से क्या लाभ- लाभ तो आभ्यन्तर विशुद्धि से है। विशुद्धि का प्रयोजन भेद ज्ञान है। भेद ज्ञान का कारण निरन्तर अध्यात्मग्रन्थों की चिन्तना है। अतः इम दशा में परमात्म प्रकाशग्रन्थ आपको अत्यन्त उपयोगी होगा। उपयोग सरल रीति से इस ग्रन्थ में संलग्न होजाता है। उपक्षीण काय में विशेष परिश्रम करना स्वास्थ्य का बाधक होता है अतः आप सानन्द निराकुलता पूर्वक धर्मध्यान में अपना समय यापन कीजिये। शरीर की दशा तो अब क्षीण सन्मुख हो रही है। जो दशा आपकी है वही प्रायः सर्व की है। परंतु कोई भीतर से दुःखी है तो कोई बाह्य से दुःखी है। आपको शारीरिक व्याधि है जो वास्तव में अघाति कर्म असाताकर्म जन्य हैं । वह आत्मगुण घातक नहीं। आभ्यंतर व्याधि मोह जन्य होती है। जोकि आत्म गुण घातक है। अतः आप मेरी सम्मति अनुसार वास्तविक दुःख के पात्र नहीं-अतः आपको अब बड़ी प्रसन्नता इस तत्त्व की होनी चाहिये जो मैं आभ्यंतर रोग से मुक्त हूं।
मा. शु. चिं. गणेशपसाद वर्णी.
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