Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २० ) अर्थ-जो कोई भी सिद्ध हुये हैं वे भेद विज्ञान से ही सिद्ध हुये हैं और जो कोई बंधे हैं वे भेदविज्ञान के न होने से ही बंध को प्राप्त हुये हैं। अतः अब इन परनिमित्तक श्रेयोमार्ग की प्राप्ति के प्रयत्न में समयका उपयोग न करके स्वावलंबन की ओर दृष्टि ही इस जर्जरावस्था में महती उपयोगिनी रामवाण तुल्य अचूक औषधि है । तदुक्तम् - इतो न किंचित् परतो न किंचित् यतो यतो यामि ततो न किंचित् ॥ विचार्य पश्यामि जगन्न किंचित् स्वात्मावबोधादधिकं न किंचित् ॥ अर्थ-इस तरफ कुछ नहीं है और दूसरी तरफ भी कुछ नहीं है तथा जहां जहां मैं जाता हूं वहां वहां भी कुछ नहीं है । विचार करके देखता हूं तो यह संसार भी कुछ नहीं है। स्वकीय आत्मज्ञान से बढ़कर कोई नहीं है। इसका भाव विचार स्वावलंबन का शरण ही संसारबंधन के मोचन का मुख्य उपाय है। मेरी तो यह श्रद्धा है जो संवर ही सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र का मूल है। For Private and Personal Use Only

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