Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८ ) किं काहदि वणवासो कायकिलेमोविचित्त उववासो॥ अज्झयणमौणपहुदी समदारहियस्स समणस्स ॥ अर्थ-समता के बिना वननिवास और काय क्लेश तथा नाना उपवास तथा अध्ययन मौन अादि कोई उपयोगी नहीं। अतः इन बाह्य साधनों का मोह व्यर्थ ही है। दीनता और स्वकार्य में अतत्परता ही मोक्षमार्ग का घातक है । जहां तक हो इस पराधीनता के भावों का उच्छेद करना ही हमारा ध्येय होना चाहिये। विशेष कुछ समझ नहीं आता। भीतर बहुत कुछ इच्छा लिग्वन की होती है परंतु जब स्वकीय वास्तविक दशापर दृष्टि जाती है तब अश्रुधारा का प्रवाह बहने लगता है। हा अात्मन् ! तूने यह मानव पर्याय को पाकर भी निजतत्व की ओर लक्ष्य नहीं दिया। केवल इन बाह्य पंचेद्रिय विषयों की निवृत्ति में ही संतोष मानकर संसार को क्या अपने स्वरूप का अपहरण करके भी लज्जित न हुआ। तद्विषयक अभिलाषा की अनुत्पत्ति ही चारित्र है। मोक्षमार्ग में संवरतत्व ही मुख्य है। निर्जरा तत्व की महिमा इसके बिना स्याद्वाद शून्यागम अथवा जीवन शन्य शरीर अथवा नेत्रहीन मुख की For Private and Personal Use Only

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