Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १० ) को देखकर ही त्याग करना क्योंकि जैन सिद्धांत में सत्य पथ मूर्छा त्याग वाले को ही होता है अतः जो जन्म भर मोक्षमार्ग का अध्ययन किया उसके फलका समय है इसे सावधानतया उपयोग में लाना। यदि कोई महानुभाव अंत में दिगंबर पद की सम्मति देवे तब अपनी अभ्यंतर विचारधारा से कार्य लेना। वास्तव में अंतरंग वृद्धिपूर्वक मूर्छा न हो तभी उस पद के पात्र बनना। इसका भी खेद न करना कि हम शक्तिहीन हो गये अन्यथा अच्छी तरह से यह कार्य सम्पन्न करते । हीन शक्ति शरीर की दुर्बलता है। आभ्यंतर श्रद्धा में दुर्बलता न हो। अतः निरंतर यही भावना रखना। " एगोमेसासदो आदाणाण दंसण लक्षणो सेमामे बाहिरा भावा सब्वे मंजोग लकावणा" (अर्थ-एक मेरी सास्वतात्मा ज्ञान दर्शन लक्षणमयी है शेष जो बाहिरी भाव है वे मेरे नहीं हैं, सर्व संयोगी भाव हैं।") अतः जहां तक बने स्वयं आप समाधान पूर्वक अन्य को समाधि का उपदेश कर समाधिस्थ आत्मा अनंत शक्तिशाली है तब यह कौन सा विशिष्ट कार्य है । वह तो उन शत्रुओं का चूर्ण कर देता है जो अनंत संसार के कारण हैं। इति For Private and Personal Use Only

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