Book Title: Samadhi Maran Patra Punj
Author(s): Kasturchand Nayak
Publisher: Kasturchand Nayak

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५ ) ज्ञान के साथ २ उपेक्षा रूप स्वाद का लाभ हो जावे। आप जानते ही हैं मेरी प्रकृति अस्थिर है तथा प्रसिद्ध हैं परंतु जो अर्जित कर्म है उनका फल तो मुझे ही चरखना पड़ेगा अतः कुछ भी विषाद नहीं। विषाद इस बात का है जो वास्तविक आत्म तत्व का घातक है उसकी उपक्षीणता नहीं होती। उसके अर्थ निरंतर प्रयास है। बाह्म पदार्थ का छोड़ना कोई कठिन नहीं। किन्तु यह नियम नहीं क्योंकि अध्यवसान के कारण छूटकर भी अध्यवसान की उत्पत्ति अन्तस्तल वासना से होती है। उस वासना के विरुद्ध शस्त्र चलाकर उसका निपात करना । यद्यपि उपाय निर्दिष्ट किया है। परंतु फिर भी वह क्या है केवल शब्दों की सुन्दरता को छोड़कर गम्य नहीं। दृष्टांत तो स्पष्ट है अग्निजन्य उष्णता जो जल में है उसकी भिन्नता तो दृष्टि विषय है। यहां तो क्रोध से जो क्षमा की प्रादुर्भूति है वह यावत् क्रोध न जावे तब तक कैसे व्यक्त है । ऊपर से क्रोध न करना क्षमा का साधक नहीं। प्राशय में वह न रहे यही तो कठिन बात है। रहा उपाय तो तत्वज्ञान सो तो हम आप सर्व जानते ही हैं किन्तु फिर भी कुछ गूढ़ रहस्य है जो महानुभावों के समागम की अपेक्षा रखता है, For Private and Personal Use Only

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