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साधना पथ
“वस्तु विचारत ध्यावतें, मन पावे विश्राम; रस स्वादत सुख ऊपजे, अनुभव याको नाम।" .
(४) बो.भा.-१ : पृ.-१८ ज्ञानीपुरुषों की आज्ञा है कि राग-द्वेष का क्षय करो। राग-द्वेष का क्षय करने के लिए ज्ञानीपुरुषों की आज्ञा की आराधना करो। सत्पुरुष के प्रति जीव को जितना प्रेम होगा, संसार के प्रति उतना ही कम होगा। किसी भी पदार्थ पर राग नहीं करना। करना हो तो सत्पुरुष पर करो। हम सत्पुरुष पर प्रेम करते हैं परंतु वे अपने पर प्रेम नहीं करते। अतः एक तरफ का प्रेम अन्त में नाश हो जाता है और जीव सत्पुरुष तुल्य बन जाता है। दुनिया का प्रेम दोनों तरफ का परस्पर होने से संसार में ही भ्रमण कराता है। सत्पुरुष के प्रति प्रेम, संसारका क्षय करानेवाला बनता है। प्रत्येक वस्तु में से प्रेम उठाकर सत्पुरुष पर करने से सब शास्त्रों का सार हृदय में मालूम होता है। आत्मप्राप्ति का यह खास उपाय है।
- प्रथम तो जीव को कुछ ख्याल नहीं होता, परन्तु सत्पुरुष की आज्ञा जीव को जिस तरह मिली हो, उसी रीति से दृढ़ विश्वास रखकर आराधन करते रहना। चित्रपट में ध्यान रखना, माला गिनने में चित्त रखना, सत्पुरुष के शब्दों में, वचनों में मन को रोकना, अनुक्रम से इस तरह पुरुषार्थ करते हुए जीव आगे बढ़ता है। सत्पुरुष के वचनों का परिणमन होकर ज्ञान की प्राप्ति होती है। क्रम से जो काम होता है, उसका फल आए बिना नहीं रहता। जैसे, चित्रपट आदि में चित्त रखना, वह वृक्ष के मूल को पोषण देने समान है; फिर वचनों में चित्त जाएँ तो पौधा बड़ा होने समान है। उसमें विशेष प्रकार से तल्लीनता आती जाए, वह फूल होने के समान है और परिणमन होकर आत्मप्राप्ति हो, वह फल खाने के समान है। सत्पुरुषों का उपदेश एक ही बात समझाने के लिए अलग अलग प्रकार से होता है। जीव की पात्रता के अनुसार उसे समझ आती रहती है। जो जीव पुरुषार्थी हैं और आगे बढ़ने के क्रम में हो तो, उन्हें हररोज कुछ न कुछ नया ही