Book Title: Ratnatray mandal Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya Kavivar
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 10
________________ रत्नत्रय विधान श्री सम्यग्दर्शन पूजन ५. बलमदरहित सम्यग्दर्शन बलमद में जो भी मूर्छित हैं अन्तरंग बल क्या जानें । सम्यग्दर्शन का घातक बलमद है कैसे पहिचानें ।। निश्चय श्रद्धा पाना है तो बलमद कर दो चकनाचूर । दृढ़ श्रद्धान हृदय में होगा पाओगे निजसुख भरपूर ।।५।। ॐ ह्रीं श्री बलमदरहितसम्यग्दर्शनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। ६.ऋद्धिमदरहित सम्यग्दर्शन जो जन ऋद्धि प्राप्त कर लेते वे न कभी मद करते हैं। जो करते मद ऋद्धि प्राप्ति का वे भवदुःख घट भरते हैं।। निश्चय श्रद्धा पाना है तो रहो ऋद्धिमद से बहु दूर । दृढ़ श्रद्धान निजअंतर होगा सम्यक्सुख होगा भरपूर ।।६।। ॐ ह्रीं श्री ऋद्धिमदरहितसम्यग्दर्शनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। ७. तपमदरहित सम्यग्दर्शन तपमद के अभिमानी बनने वाले भवदुःख पाते हैं। तपफल मोक्षसौख्य तज करके सदा अधोगति जाते हैं। निश्चय श्रद्धा पाना है तो तपमद का कर दो अवसान। दृढ़ श्रद्धान सुसम्यक् होगा पाओगे निजपद निर्वाण ।।७।। ॐ ह्रीं श्री तपमदविहीनसम्यग्दर्शनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। ८.रूपमदरहित सम्यग्दर्शन कामदेव सम अगर रूप है तो भी मान न कर चेतन । अगर रूपमद उर में होगा तो फिर होगा पूर्ण पतन ।। निश्चय श्रद्धा पाना है तो करो रूपमद पूर्ण विनाश। दृढ़ श्रद्धा अन्तर में धारो पाओ सम्यग्ज्ञान प्रकाश ।।८।। ॐ ह्रीं श्री रूपमदविहीनसम्यग्दर्शनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। (दोहा) आठों मद का नाश कर, करो स्वयं का ध्यान । सम्यग्दर्शन शुद्ध पा, करो आत्मकल्याण ।। पूर्ण अर्घ्य अर्पण करूँ, करूँ अष्टमद नाश। सम्यग्दर्शन प्रकट कर, पाऊँ आत्मप्रकाश ।। ॐ ह्रीं श्री अष्टमदरहितसम्यग्दर्शनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा । षट् अनायतन रहित सम्यग्दर्शन १. कुदेव-अनायतन रहित सम्यग्दर्शन (ताटंक) सर्व कदेवों से बचकर प्रभु सच्चे देव सदा ध्याऊँ। वीतराग-सर्वज्ञ-हितंकर श्री अरहंत शरण पाऊँ।। महादोष सम्यग्दर्शन का है अनायतन दुःखदायी। सदा सुदेव चरण ही पूजूं जो हैं शाश्वत सुखदायी ।।१।। ॐ ह्रीं श्री कुदेवअनायतनविहीनसम्यग्दर्शनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा। २. कुगुरु-अनायतन रहित सम्यग्दर्शन सतत् कुगुरुओं की सेवा कर मैंने प्रभु भवदुःख पाया। नहीं सुगुरुओं के चरणों में जाकर तत्त्वज्ञान भाया ।। महादोष सम्यग्दर्शन का है अनायतन दुःखदायी। सच्चे वीतराग गुरु की ही सेवा उत्तम सुखदायी ।।२।। ॐ ह्रीं श्री कुगुरुअनायतनविहीनसम्यग्दर्शनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। ३. कुधर्म-अनायतन रहित सम्यग्दर्शन जो कुधर्म का सेवन करते वे ही पाते कष्ट अपार । वीतराग जिनधर्म छोड़कर करते नित खोटा व्यवहार ।। महादोष सम्यग्दर्शन का भव अनंत हों दुःखदायी। सम्यग्धर्म हृदय में धारण करना ही बहु सुखदायी ।।३।। ॐ ह्रीं श्री कुधर्माअनायतनविहीनसम्यग्दर्शनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा। ४. कुदेव-उपासक-अनायतन रहित सम्यग्दर्शन जो कुदेव के सदा उपासक और प्रशंसक होते हैं। वे ही भवदुःख वृक्षबीज अपने अंतर में बोते हैं।। महादोष सम्यग्दर्शन का है भवसागर दुःखदायी। जो सुदेव के सतत उपासक पाते निजपद सुखदायी ।।४।। ॐ ह्रीं श्री कुदेवउपासकअनायतनविहीनसम्यग्दर्शनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। ५. कुगुरु-उपासक-अनायतन रहित सम्यग्दर्शन कुगुरु उपासक तथा प्रशंसक नरकों में ही जाते हैं । हो मिथ्यात्व मोह से दूषित दुर्गति के दिन पाते हैं ।।

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