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८. श्री प्रभावना अंग पूजन
(दोहा) धारूँ अंग प्रभावना, परमोत्तम सुखकार। धर्मप्रभाव महान कर, पाऊँ सौख्य अपार ।।१।। जिनपूजन रथयात्रा, जिनमंदिर निर्वाण । स्वाध्याय के हेतु मैं, दूँ शास्त्रों का दान ।।२।। बिम्ब प्रतिष्ठा आदि से. करूँ स्वपर कल्याण। विद्यालय निर्मित करूँ, औषधि करूँ प्रदान ।।३।। धर्मायतनविवेक से, निर्मित करूँ प्रधान ।
मैं प्रभावना अंग की, पूजन करूँ महान ।।४।। ॐ ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनस्य प्रभावनाअंग अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनस्य प्रभावनाअंग अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनस्य प्रभावनाअंग अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
(चौपाई) धर्म प्रभाव नीर के ज्ञानी। वे ही हैं सच्चे श्रद्धानी ।
हो प्रभावना अंग मनोहर । उत्तम सुखदाता है सुन्दर ।।१।। ॐ ह्रीं श्री प्रभावनाअंगाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
धर्म प्रभावी चंदन लाऊँ। शाश्वत शीतलता उर लाऊँ।
हो प्रभावना अंग मनोहर । उत्तम सुखदाता है सुन्दर ।।२।। ॐ ह्रीं श्री प्रभावनाअंगाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
धर्म प्रभावी अक्षत अनुपम । अक्षयपद देते हैं बिन श्रम ।
हो प्रभावना अंग मनोहर । उत्तम सुखदाता है सुन्दर ।।३।। ॐ हीं श्री प्रभावनाअंगाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री प्रभावना अंग पूजन
धर्म प्रभावी पुष्प सजाऊँ । कामबाण पीड़ा विनशाऊँ।
हो प्रभावना अंग मनोहर । उत्तम सुखदाता है सुन्दर ।।४।। ॐ ह्रीं श्री प्रभावनाअंगाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
धर्म प्रभावी सुचरु चढ़ाऊँ। क्षुधारोग हर शिवसुख पाऊँ।
हो प्रभावना अंग मनोहर । उत्तम सुखदाता है सुन्दर ।।५।। ॐ ह्रीं श्री प्रभावनाअंगाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
धर्म प्रभावी दीप उजारूँ । मिथ्या तिमिर सर्व निरवारूँ।
हो प्रभावना अंग मनोहर । उत्तम सुखदाता है सुन्दर ।।६।। ॐ ह्रीं श्री प्रभावनाअंगाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
धर्मप्रभावी धूप ध्यानमय । अष्टकर्म तत्काल करूँ क्षय।
हो प्रभावना अंग मनोहर । उत्तम सुखदाता है सुन्दर ।।७।। ॐ ह्रीं श्री प्रभावनाअंगाय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
धर्म प्रभावी स्वफल चढ़ाऊँ। महामोक्षफल हे प्रभु पाऊँ।
हो प्रभावना अंग मनोहर । उत्तम सुखदाता है सुन्दर ।।८।। ॐ ह्रीं श्री प्रभावनाअंगाय महामोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
धर्म प्रभावी अर्घ्य बनाऊँ। पद अनर्घ्य अविनश्वर पाऊँ।
हो प्रभावना अंग मनोहर । उत्तम सुखदाता है सुन्दर ।।९।। ॐ ह्रीं श्री प्रभावनाअंगाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
(ताटंक) धर्ममार्ग की कर प्रभावना सम्यग्दर्शन ग्रहण करूँ। शुद्ध आचरण के द्वारा प्रभु अप्रभावना सर्व हरूँ॥१॥ जिनदर्शन पूजन के हित जिनमंदिर निर्माण करूँ। श्री जिनरथयात्रा आदिक के कार्य सदैव महान करूँ।।२।। धर्म प्रभाव हेतु शास्त्रों का प्रभु मैं सदा प्रचार करूँ। जो भूले हैं धर्म उन्हें मैं जागृत करूँ अज्ञान हरूँ॥३॥ दुखीजनों को चार दान दे मैं उनका कल्याण करूँ।। विद्यालय औषधालय तथा अनाथालय निर्माण करूँ॥४॥ श्राविकाश्रम ब्रह्मचर्य आश्रम आदिक करके निर्माण । बहु प्रकार का पात्रदान ढूँकरूँ स्वयं का ही कल्याण ।।५।।
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