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२२. श्री ईसिमितिधारक मुनिराज पूजन
(वीर) प्रासुकपथ पर दिन में जूड़ा प्रमाण देख चलते मुनिराज । सावधान हो यत्नपूर्वक गमनागमन करें ऋषिराज ।। जीवों की रक्षा करते हैं पाल ईर्यासमिति महान।
मैं भी पूजन करूँ विनय से पाऊँ निज चारित्र महान ।। ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीईर्यासमिमिधारकमुनिराज अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीईर्यासमिमिधारकमुनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीईर्यासमिमिधारकमुनिराज अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्।
(सार-जोगीरासा) ज्ञान पराग स्वजल पाकर प्रभु निर्मलता उर लाऊँ। जन्म-जरा-मरणादि रोग हर परम शान्त हो जाऊँ।। प्रथम ईर्यासमिति पालकर सम्यक् मुनि बन जाऊँ।
जूड़ाप्रमाण' भूमि लखकर प्रभु आगे चरण बढ़ाऊँ।।१।। ॐ ह्रीं श्री ईर्यासमितिधारकमुनिराजाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
शुद्धज्ञानरस गंध प्राप्तकर जिनपद भ्रमर कहाऊँ। भवज्वर प्रभु सम्पूर्ण मिटाऊँ पूर्ण शान्तरस पाऊँ।। प्रथम ईर्यासमिति पालकर सम्यक् मुनि बन जाऊँ।
जूडाप्रमाण' भूमि लखकर प्रभु आगे चरण बढ़ाऊँ॥२॥ ॐ ह्रीं श्री ईर्यासमितिधारकमुनिराजाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
ज्ञानाक्षत धवलोज्ज्वल लाऊँ जिनपद अग्र चढ़ाऊँ। अक्षयपद पाने को स्वामी सम्यक मनि बन जाऊँ।। प्रथम ईर्यासमिति पालकर सम्यक मनि बन जाऊँ।
जूड़ाप्रमाण' भूमि लखकर प्रभु आगे चरण बढ़ाऊँ।।३।। ॐ ह्रीं श्री ईर्यासमितिधारकमुनिराजाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। १. चार हाथ
श्री ईर्यासमितिधारक मुनिराज पूजन
ज्ञानपुष्प की सुरभि प्राप्त कर कामव्यथा विनशाऊँ। महाशील गुण प्राप्ति हेतु मैं सम्यक् मुनि बन जाऊँ ।। प्रथम ईर्यासमिति पालकर सम्यक् मुनि बन जाऊँ।
जूड़ाप्रमाण' भूमि लखकर प्रभु आगे चरण बढ़ाऊँ ।।४।। ॐ ह्रीं श्री ईर्यासमितिधारकमुनिराजाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
अनुभवरसमय ज्ञान सुचरु पा परम तप्त हो जाऊँ। शुद्ध निराहारीपद पाकर परमामृतरस पाऊँ।। प्रथम ईयर्यासमिति पालकर सम्यक मनि बन जाऊँ।
जूडाप्रमाण' भूमि लखकर प्रभु आगे चरण बढ़ाऊँ।।५।। ॐ ह्रीं श्री ईर्यासमितिधारकमुनिराजाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
ज्ञानदीप से मोह नष्टकर आत्मज्योति प्रकटाऊँ। निज शद्धात्म तत्त्व को ध्याकर परम सुखी हो जाऊँ।। प्रथम ईर्यासमिति पालकर सम्यक् मुनि बन जाऊँ।
जूडाप्रमाण' भूमि लखकर प्रभु आगे चरण बढ़ाऊँ ।।६।। ॐ ह्रीं श्री ईर्यासमितिधारकमुनिराजाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
ज्ञानधूप की गंध अनूठी भावमयी अब लाऊँ। अष्टकर्म की इकशत अड़तालीस प्रकृति विनशाऊँ ।। प्रथम ईर्यासमिति पालकर सम्यक् मुनि बन जाऊँ।
जूडाप्रमाण' भूमि लखकर प्रभु आगे चरण बढ़ाऊँ ।।७।। ॐ ह्रीं श्री ईर्यासमितिधारकमुनिराजाय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
ज्ञान स्वतरु के फल समभावी शक्लध्यान धर पाऊँ। महामोक्षफल पाकर स्वामी त्रिलोकाग्र पद पाऊँ ।। प्रथम ईर्यासमिति पालकर सम्यक् मुनि बन जाऊँ।
जूडाप्रमाण' भूमि लखकर प्रभु आगे चरण बढ़ाऊँ॥८॥ ॐ ह्रीं श्री ईर्यासमितिधारकमुनिराजाय महामोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
ज्ञानभाव के अर्घ्य बनाऊँ प्रभु पद भेंट चढ़ाऊँ। पद अनर्घ्य पाने को शिवपथ पर चरण बढ़ाऊँ। प्रथम ईर्यासमिति पालकर सम्यक् मुनि बन जाऊँ।
जूड़ाप्रमाण' भूमि लखकर प्रभु आगे चरण बढ़ाऊँ।॥९॥ ॐ ह्रीं श्री ईर्यासमितिधारकमुनिराजाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। १. चार हाथ
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