________________ समुच्चय महाऱ्या रत्नत्रय विधान विश्व के प्राणी सभी चिरशान्ति पायें हे प्रभो। मूलभूत निजात्मा का ज्ञान ही पायें विभो / / 3 / / मूल भूल विनष्ट करके नाथ मैं ज्ञानी बनूँ। भक्ति रत्नत्रय हृदय हो पूर्णतः ध्यानी बनूँ / / 4 / / पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् क्षमापना पाठ (दोहा) भूल चूक कर दो क्षमा, हे त्रिभुवन के नाथ / आप कृपा से हे प्रभो, मैं भी बनें स्वनाथ / / अल्प नहीं है हे प्रभो, पूजन विधि का ज्ञान / अपना सेवक जानकर, क्षमा करो भगवान / / पुष्पांजलिं क्षिपेत् म