Book Title: Ratnatray Vidhan Author(s): Rajmal Pavaiya Publisher: Tirthdham Mangalayatan View full book textPage 5
________________ श्री रत्नत्रय विधान पीठिका (रोला ) सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्रमयी रत्नत्रय । यहीं मुक्ति सोपान तीन हैं पवित्र शिवमय ॥ यही मुक्ति का मार्ग एक है भवदुःखहारी। यही भव्य जीवों को है उत्तम सुखकारी ॥ है पच्चीस दोष से विरहित सम्यग्दर्शन | आठ अंगयुत सम्यग्ज्ञान श्रेष्ठ ज्ञानधन || - तेरहविध चारित्र शुद्ध शिवसुख का साधन । दर्शन ज्ञान चारित्र दिव्य त्रिभुवन में धन-धन ॥ तीर्थंकर भी इसको धारण कर हर्षाते । . इसके द्वारा भवसागर तर शिवसुख पाते || निश्चय निर्विकल्प रत्नत्रय शिवसुखदायी । रत्नत्रय व्यवहार मात्र है सुर सुखदायी ॥ अब तक जो भी सिद्ध हुए उनको है वन्दन । वर्तमान में जो हो रहे हैं उन्हें अभिनन्दन ॥ आगे भी जो होंगे सिद्ध उन्हें अभिनन्दूँ । भूत भविष्यत् वर्तमान सिद्धों को वन्दू || ( मानव ) मुनि पंचमहाव्रत धारी रत्नत्रय से हो भूषित ! रत्नत्रयनिधि को पाकर होते न कभी फिर दूषित ॥ रत्नत्रय भवदुःखघाता रत्नत्रय शिवसुखदाता | रत्नत्रय की महिमा से ध्रुव सिद्ध स्वपद मिल जाता ॥ प्रभु महावीर की वाणी रत्नत्रय निधि दर्शाती । जो भी भव्यात्मा होते उनको ही सतत सुहाती है ॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् ।Page Navigation
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