Book Title: Ratnatray Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 23
________________ श्री रत्नत्रय विधान । मैं स्वपर विवेक पूर्वक प्रभु सम्यक् चारित्र सजाऊँगा। दृढ़ संयम के रथ पर चढ़कर अविरति सम्पूर्ण हटाऊँगा ॥ ॐ ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय अक्षयपदप्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । सम्यक् चारित्रं पुष्प सुरभित निज अंतरंग में लाऊँगा। कामाग्नि बुझाऊँगा तत्क्षण मैं महाशील गुण पाऊँगा ॥ मैं स्वपर विवेक पूर्वक प्रभु सम्यक् चारित्र सजाऊँगा। दृढ़ संयम के रथ पर चढ़कर अविरति सम्पूर्ण हटाऊँगा ॥ ॐ ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। सम्यक् चारित्र स्वानुभव रस निर्मित चरु चरण चढ़ाऊँगा। चिर क्षुधारोग को क्षय करके आनंद अतीन्द्रिय पाऊँगा ॥ मैं स्वपर विवेक पूर्वक प्रभु सम्यक् चारित्र सजाऊँगा। दृढ़ संयम के रथ पर चढ़कर अविरति सम्पूर्ण हटाऊँगा। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्यपामीति स्वाहा । सम्यक् चारित्र दीप लाकर अज्ञान तिमिर विनशाऊँगा। निज ज्ञान चन्द्र गुणमय अनंत निज अंतर में प्रगटाऊँगा ॥ मैं स्वपर विवेक पूर्वक प्रभु सम्यक् चारित्र सजाऊँगा। दृढ़ संयम के रथ पर चढ़कर अविरति सम्पूर्ण हटाऊँगा ॥ ॐ ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। सम्यक् चारित्र धूप लेकर मैं आठों कर्म नशाऊँगा। नर्कादिक पशु नर सुगति के सारे ही कष्ट मिटाऊँगा ॥ मैं स्वपर विवेक पूर्वक प्रभु सम्यक् चारित्र सजाऊँगा। दृढ़ संयम के रथ पर चढ़कर अविरति सम्पूर्ण हटाऊँगा। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय अष्टकर्मविनाशनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। सम्यक् चारित्र वृक्ष के फल पाकर मैं शिवपुर जाऊँगा। अविनाशी अजर अमर पद पा मैं महामोक्ष फल पाऊँगा ।।

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