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श्री रत्नत्रय विधान
मैं स्वपर विवेक पूर्वक प्रभु सम्यक् चारित्र सजाऊँगा । दृढ़ संयम के रथ पर चढ़कर अविरति सम्पूर्ण हटाऊँगा ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय मोक्षफलप्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा । सम्यक् चारित्र अर्घ्य उत्तम चरणों में नाथ चढ़ाऊँगा । ! पदवी अनर्घ्य पाऊँगा मैं फिर लौट न भव में आऊँगा । मैं स्वपर विवेक पूर्वक प्रभु सम्यक् चारित्र सजाऊँगा । दृढ़ संयम के रथ पर चढ़कर अविरति सम्पूर्ण हटाऊँगा । ॐ ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय अनर्घ्यपदप्राप्ताय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । पंचमहाव्रत संबंधी अर्घ्य
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( वीरछंद )
परम अहिंसा व्रत नित पालूँ सर्व जीव रक्षा उर धार । निज स्वभाव में लीन रहूँ प्रभु षट्कायक की दया विचार || दृढ़ सम्यक् चारित्र पालकर करूँ आत्मा का उद्धार । यथाख्यात चारित्र शक्ति से हो जाऊँ भव सागर पार ॥१ ॥ ॐ ह्रीं श्री अहिंसामहाव्रतसमन्वित सम्यक्चारित्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । परम सत्य पालूँ स्वामी सर्व असत्य भाव निरवार | हितमित प्रिय वच ही बोलूँ मैं करूँ आत्मा का उद्धार ॥ दृढ़ सम्यक् चारित्र पालकर करूँ आत्मा का उद्धार । यथाख्यात चारित्र शक्ति से हो जाऊँ भव सागर पार ॥२॥ ॐ ह्रीं श्री सत्यमहाव्रतसमन्वित सम्यक्चारित्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । परम अचौर्य महाव्रत पालूँ ग्रहण न करूँ अदत्तादान | स्वामी की आज्ञा बिन कोई वस्तु न लूँ मैं बन अनजान ॥ दृढ़ सम्यक् चारित्र पालकर करूँ आत्मा का उद्धार । यथाख्यात चारित्र शक्ति से हो जाऊँ भव सागर पार ॥३ ॥ ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतसमन्वित सम्यक्चारित्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । परम ब्रह्मचर्य व्रत पालूँ शील स्वगुण निज प्रगट करूँ । अगर काठ की पुतली भी हो तो भी दृष्टि न मलिन करूँ ॥