Book Title: Ratnatray Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 32
________________ ३ . श्री रत्नत्रय विधान (दोहा) . महार्घ्य अर्पण करूँ, पूर्ण विनय से देव । आप कृपा से प्राप्त हो, परम शान्ति स्वयमेव ॥. ॐ ह्रीं श्री सर्वपूज्यपदेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये महायँ निर्वपामीति स्वाहा। शान्तिपाठ (गीतिका.) सुख शान्ति पाने के लिए पुरुषार्थ मैंने प्रभु किया। श्रेष्ठ रत्नत्रयविधान महान प्रभु मैंने किया।। अब नहीं चिन्ता मुझे है कभी होऊँगा अशान्त । आज मैंने स्वतः पाया ज्ञान का सागर प्रशान्त ॥ विश्व के प्राणी सभी चिरशान्ति पायें हे प्रभो। मूलभूत निजात्मा का ज्ञान ही पायें विभो ॥ मूल भूल विनष्ट करके नाथ मैं ज्ञानी बनूँ। भक्ति रत्नत्रय हृदय हो पूर्णतः ध्यानी बनूँ ॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् नौ बार णमोकार मंत्र द्वारा पंच परमेष्ठी का स्मरण । क्षमापना पाठ ( दोहा ) भूल चूक कर दो क्षमा, हे त्रिभुवन के नाथ । आप कृपा से हे प्रभो, मैं भी बनूँ स्वनाथ॥ अल्प नहीं है हे प्रभो, पूजन विधि का ज्ञान | अपना सेवक जानकर, क्षमा करो भगवान || पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् -

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