Book Title: Ratnatray Vidhan Author(s): Rajmal Pavaiya Publisher: Tirthdham Mangalayatan View full book textPage 4
________________ श्री रत्नत्रय विधान - - श्री रत्नत्रय विधान मंगलाचरण (अनुष्टुप) मंगलं सिद्ध परमेष्ठी, मंगलं तीर्थकरम् । मंगलं शुद्ध चैतन्यं, आत्म धर्मोस्तु मंगलम् ॥ (दोहा) मंगलं दर्शनं ज्ञानं, चारित्रं रत्नत्रयम् । मंगलं कल्याणमस्तु, नव विधान सुमंगलम् ।। (चामर) वीतराग श्री जिनेन्द्र ज्ञानरूप मंगलम् । गणधरादि सर्वसाधु ध्यानरूप मंगलम् ॥ आत्मधर्म वस्तुधर्म सार्वधर्म मंगलम् | वस्तु का स्वभाव ही अनद्यानंत मंगलम् ।। मोक्ष प्राप्ति का उपाय रत्नत्रय मंगलम् । दिव्य ज्ञानपति प्रधान आत्मेश मंगलम्॥ भाव द्रव्य लिंग मुनि स्वरूप शुद्ध मंगलम् । आत्म अनुभूति शुद्ध रत्नत्रय मंगलम् ॥ (दोहा) जयति पंच परमेष्ठी जिन प्रतिमा जिन धाम । जय जगदम्बे दिव्य ध्वनि श्री जिन धर्म प्रणाम ।। पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्।Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34