Book Title: Ratnatray Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 15
________________ JJ श्री रत्नत्रय - विधान कुगुरु कुदेव कुंशास्त्र और इनके सेवक छः अनायतन | देव मूढ़ता गुरु मूढ़ता लोक मूढ़ता तीन जघन || जाति रूप कुल ऋद्धि तपस्या पूजा शक्ति ज्ञान मद आठ । मूल दोष सम्यक् दर्शन के यह पच्चीसों तजो विराट || जय जय सम्यक्दर्शन आठों अंग सहित अनुपम सुखकार । यही धर्म का सुदृढ़ मूल है इसकी महिमा अपरम्पार ।। मोक्ष महल की पहिली सीढ़ी पावन परम पवित्र प्रधान । कुन्दकुन्द ने यही कहा है दंसण मूलो धर्म महान || ॐ ह्रीं श्री अष्ट- अंगयुतसम्यग्दर्शनाय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । आशीर्वाद (दोहा) - सम्यक् दर्शन प्राप्तकर, करूँ आत्म कल्याण । निज स्वभाव की शक्ति से, पाऊँ पद निर्वाण ॥ इत्याशीर्वाद १२ मंत्र जपो नवकार मनुवा, मंत्र जपो नवकार । पंच प्रभु को वन्दन करलो, परमेष्ठी सुखकार ॥ टेक ॥ अरहंतों का दर्शन करके, शुद्धात्मा का परिचय करलो । शिवसुख साधनहार मनुवा, मंत्र जपो नवकार ॥१ ॥ सब सिद्धों का ध्यान लगालो, सिद्धसमान स्वयं को ध्यालो । मंगलमय सुखकार मनुवा, मंत्र जपो नवकार ॥२॥ आचार्यों को शीश नवाओ, निर्ग्रन्थों का पथ अपनाओ । मुक्तिमार्ग आराध मनुवा, मंत्र जपो नवकार ॥३ ॥ उपाध्याय से शिक्षा लेकर, द्वादशांग को शीश नवाकर । जिनवाणी उर धार मनुवा, मंत्र जपो नवकार ॥४॥ सर्व साधु को वंदन करलो, रत्नत्रय आराधन करलो । जन्म-मरण क्षयकार मनुवा, मंत्र जपो नवकार ॥५ ॥

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