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जय विधान
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श्री सम्यक् दर्शन पूजन
स्थापना
(सोरठा) सम्यक् दर्शन पूर्ण, हर लेता मिथ्यात्व सब। भव्य भावना पूर्ण, मोक्ष प्रदायक श्रेष्ठ है। पूजू मन वच काय, सम्यक् दर्शन भावमय।
करूँ आत्म कल्याण, यही सुमति दो हे प्रभो॥ ॐ ह्रीं श्री सम्यग्दर्शन अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री सम्यग्दर्शन अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री सम्यग्दर्शन अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
(ताटंक) सम्यक् नीर प्राप्त करने को ध्यान लगाऊँ निज स्वामी। जन्म मृत्यु भय क्षय करने को स्वबल जगाऊँ हे स्वामी॥ सम्यक् दर्शन की पूजन का भाव हृदय में आया है।
समकित की महिमा पाने को गुरु ने मुझे जगाया है | ॐ ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
समकित,चंदन की गरिमा से शोभित हो जाऊँ स्वामी। भव आतप ज्वर क्षय करने को शुद्ध भाव लाऊँनामी॥ सम्यक् दर्शन की पूजन का भाव हृदय में आया है।
समकित की महिमा पाने को गुरु ने मुझे जगाया है। ॐ ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनाय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा
सम्यक् अक्षत भावमयी ला भवदधि तर जाऊँ स्वामी। अक्षय पद अखंड निज पाऊँ निजानंद पाऊँ नामी॥
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